राजकुमार गुप्ताफ्लू क्या है __इंसानों में फ्लू एक वायरस  या विषाणु जनित रोग है जिसे इन्फ्लूएंजा- ए कहते हैं यह बर्ड फ्लू के समान ही होता हैं । सबसे पहले 1892 में जर्मन वैज्ञानिक रिचर्ड फिफर ने फ्लू के रोगियों की नाक से एक छोटे से जीवाणु को अलग किया इसे बेसिलस इन्फ्लूएंजा नाम दिया । 

क्या फ्लू रूप बदलता है __एंटीजेनिक ड्रिफ्ट या एंटीजेनिक शिफ्ट के माध्यम से फ्लू वायरस बदल सकतें हैं । एंटीजेनिक बहाव होता हैं ,फ्लू वायरस में परिवर्तन समय के साथ धीरे धीरे होता हैं । यह बदलाव इन्फ्लूएंजा -ए और इन्फ्लूएंजा -बी  दोनों वायरस के साथ होता हैं । परिवर्तन अक्सर इतने अधिक होते हैं कि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली साल दर साल फ्लू वायरस को पहचान नहीं पाती हैं । ये अत्यधिक परिवर्तनशील होता हैं। यह एक ही मौसम में भी आनुवंशिक विविधताएँ प्राप्त कर लेते हैं जिन्हें उत्परिवर्तन कहते हैं । यह हर बदलते मौसम में सीजनल फ्लू का ही एक प्रकार हैं । यह जब भी आता है अपना रूप बदल कर आता है । अभी यह  H-3 N-2 की शक्ल में संक्रमण कर रहा हैं । इन्फ्लूएंजा वैसे तो चार तरह का होता हैं __ (1) ए  (2) बी  (3 ) सी (4 ) डी , इनमें से ए और बी मनुष्य का संक्रमण है जबकि सी और डी पक्षी या कुछ स्तनधारी जानवरों का संक्रमण है । इनमें से केवल  " ए " ही सबसे खतरनाक वैश्विक महामारी का कारण बनता हैं । यानि सबसे अधिक खतरनाक विषैला इन्फ्लूएंजा -ए ही है क्योंकि यह गंभीर विनाशकारी महामारी प्रकोप का कारण बनता हैं । जबकि फ्लू बी कम खतरनाक होता हैं कयोंकि इससे महामारी नहीं आती हैं । वयस्कों में फ्लू - ए अधिक गंभीर होता हैं । बच्चों में फ्लू- बी होना आम बात है । यह पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में अधिक गम्भीर हो सकता हैं । अगर अच्छी इम्यूनिटी पॉवर हैं तो अधिक गंभीर नहीं हो पाते है । 

कैसे फैलता है __यह एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति में बहुत ही आसानी से फैलता है । इंफ्लूएंजा वायरस अभी तक वायुजनित संचरण के बारे में अज्ञात हैं ।  यह वास्तव में पक्षियों और अन्य जानवरों जैसे सुअरों के बीच उत्पन्न होता हैं । यह वायरस मुख्य रूप से इन्फ्लूएंजा वायरस मुक्त छोटी बूंदों से फैलता है । फ्लू से संक्रमित लोगों के खाँसने , छींकने या बात करने पर बूंदे हवा में निकल जाती हैं । एक बार हवा में ये छोटी संक्रामक बूंदे आसपास के लोगों के मुंह या नाक में जा सकती हैं । यदि घर में एक व्यक्ति संक्रमित हुआ है तो धीरे धीरे घर के सारे सदस्य संक्रमित हो जाते हैं ।

वातारण में कब तक जिन्दा रहता हैं ___फ्लू की बूंदे हवा में कई घंटों तक जीवित रह सकती हैं । कम तापमान उनकी जीवित रहने की दर को बढ़ा देता है । फ्लू के वायरस हाथों पर लम्बे समय तक जीवित नहीं रह पाते हैं । लगभग 5 मिनट के भीतर निम्न स्तर तक गिर जाते हैं । 

इन्फ्लूएंजा का अर्थ __इसे इन्फ्लूएंजा बुखार (श्लेष्मिक ज्वर ) कहते हैं । यह एक विशेष समूह के वायरस के कारण मानव समुदाय में होने वाला एक संक्रामक रोग है । इसे फ्लू या ग्रिप भी कहते हैं ।

बनावट __इन्फ्लूएंजा वायरस एक गोल या लम्बा या अनियमित आकार का हो सकता हैं । और इसके बाहर स्पाइक्स की एक परत होती हैं । स्पाईक्स दो अलग अलग प्रकार के होते हैं । प्रत्येक एक अलग प्रोटीन से बना होता हैं __ (1) हेमाग्लूटिनिन / HA नाम की प्रोटीन से बना होता हैं (2) न्यूरोमिनिडेस / NA नाम की प्रोटीन से बना होता हैं । प्रत्येक इन्फ्लूएंजा वायरस  न्यूक्लिक एसिड दोहरे फंसे DNA के विपरीत एकल फंसे हुए RNA से बने होते हैं । इन्फ्लूएंजा वायरस के RNA जीन न्यूक्लियोटाइड्स की श्रृंखला से बने होते हैं जो एक साथ बंधे होते हैं और ए , सी , जी और यू अक्षरों द्वारा कोडिट होते हैं जो क्रमशः एडेनिन , साइटोसिन, गुआनिन और यूरेसिल के लिए खड़े होते हैं । इसकी बाहरी सतह प्रोटीन की बनी होती हैं ।

लक्षण __ संक्रमण से सबसे पहले आंखों में जलन होने लगती हैं , नाक की श्लेष्मा में सूजन आती हैं और नाक बहने लगता है और छींके आने लगती हैं , गले में खराश , थकावट ,  बदन दर्द , ठंड लगना , कमज़ोरी मेहसूस होना , मांसपेशियों में दर्द , सिर दर्द , अलग अलग डिग्री के साथ बुखार आने लगता है , आँखें पानी से भर जाती हैं , खाने का मन नहीं करना , मतली या उल्टी भी हो सकती हैं ।  अनुत्पादक खांसी आने लगती हैं । ये सब अचानक से ही होने लगते हैं बाद में बहुत तेज होने लगते हैं । बुखार लौट कर भी आ सकता हैं । बच्चों के पेट में दर्द भी हो सकता हैं । यह संक्रमण ख़ास कर श्वसन तंत्र का होता हैं यानि नाक से फेफड़ों तक की बीमारी है , कहीं बार फेफड़ों में सूजन आ जाती हैं तो मरीज़ को बचाना मुश्किल हो जाता हैं । श्वास के रास्ते सूजन बढ़ने से श्वास लेने में कठिनाई होने लगती हैं जिससे मृत्यु भी हो जाती हैं । फुफ्फुसो के उपद्रव की इसमें बहुत सम्भावना रहती हैं ।  यह रोग अक्सर महामारी के रुप में फैलता है । अगर यह व्यक्ति लम्बे समय तक संक्रमित रहता है तो फेफड़ों में सूजन आ कर न्यूमोनिया का कारण बन कर श्वास नली को बन्द कर देता हैं । 

संक्रमण अवधि __फ्लू वाले अधिकांश स्वस्थ बच्चें और वयस्क किसी भी लक्षण के विकसित होने से एक दिन पहले और लक्षणों के ठीक होने के सात दिन बाद तक दूसरों को संक्रमित कर सकतें हैं । जबकि कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग सात दिनों से कई हफ्तों तक संक्रमित रह सकतें हैं । यह वायरस पहले तीन से चार दिनों में सबसे अधिक संक्रामक होता हैं । ज्यादातर लोग 7 से 10 दिनों में ठीक हो जाते हैं। 

सबसे पहले महामारी कहां आई थी __पहली महामारी रूस में सन 1780 में आई थी बाद में चीन और भारत में सन 1781 मे भयानक महामारी का रूप लिया था । यह स्पेनिश में 1918_19 में आई थी जिसमें 40 से 50 मिलियन लोगों की मृत्यु होने का अनुमान लगाया गया था । इसलिए इस फ्लू को स्पेनिश फ्लू भी कहते हैं ।

गंभीर जटिलताएं किसमें __यह संक्रमण पांच वर्ष से छोटे बच्चें , 65 वर्ष से अधिक उम्र के वृद्ध , शुगर , अस्थमा , गर्भवती ,  हृदय से सम्बन्धित रोगी या लम्बी बीमारी वाले लोगों में गम्भीरता हो सकती हैं ।

 अधिक संक्रमण कब __ जैसे जैसे  बुखार आने लगता हैं वैसे वैसे शरीर में संक्रमण की दर बढ़ने लगती हैं ।  संक्रमण बुखार समाप्त होने के लगभग 24 घण्टे बाद तक फ्लू संक्रामक रहता हैं इसलिए रोगी को बुखार समाप्त होने के 24 घण्टे तक घर में अलग रहने की सलाह दी जाती हैं ।

टीकाकरण कितना सुरक्षित __टीका लगने के दो सप्ताह बाद टीके का असर शुरू होता है और 6 से 8 महीने तक सुरक्षा कवच देता हैं । 

लैब परीक्षण __इन्फ्लूएंजा के लिए निम्न लेब परीक्षण करवाएं जा सकतें हैं __वायरल कल्चर , सीरोलॉजी , रैपिड एंटीजन टेस्टिंग , रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलिमरेज चैन रिएक्शन ( आर टी पी सी आर ) , इम्यूनो फ्लोरेंसेंस एसेज , रैपिड मॉलिक्युलर एसेज शामिल हैं ।

रोकथाम कैसे करें __1 . खांसते या छींकते समय अपने मुंह और नाक को टिशू पेपर या कोहनी से ढकना , सार्वजनिक स्थानों पर थूकने से बचना , भीड़भाड़ वाले क्षेत्र में मास्क का प्रयोग करना एवं बार बार साबुन से हाथ धोना । और सेनिटाइजर का प्रयोग करते रहना । 

2 . जो पांच वर्ष से छोटे बच्चें है या 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोग हैं या किसी लम्बी बीमारी पीड़ित हैं वे लोग श्वास , जुकाम- खांसी , बुखार वालों से दूर रहें ।  

3 . हर वर्ष इन्फ्लूएंजा वैक्सीन के टीके लगवाना चाहिए । 

4 . अच्छी स्वच्छता के साथ श्वसन स्वच्छता , खांसी शिष्टाचार का कार्यान्वयन करें । 

5 . बीमार एच सी पी का उचित प्रबंधन करें । 

6 . संक्रमित व्यक्ति यात्रायें बन्द कर देवें । 

7 . हाथ नहीं मिलाएं दूर से ही सम्मान करें ।

8 . प्रत्येक गर्भवती महिला को 26 वें सप्ताह में फ्लू का टीका लगाने की सलाह दी जाएं ।
9 . संक्रमण होने पर ख़ुद को कम से कम दस दिनों तक अलग रखना चाहिए । 
10 . संक्रमण का आभास होते ही तुरन्त किसी यूनानी चिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए । वायरल बीमारियों में हर्बल यूनानी चिकित्सा जादू की तरह कार्य करती हैं जिसका कोई साईड इफेक्ट नहीं होता हैं साथ ही इम्यूनिटी पॉवर शीघ्रता से बढ़ाती हैं ।

घरेलू उपाय __
1. एक ग्लास पानी में एक चम्मच पिसी हल्दी और एक चम्मच पिसा अदरक उबालें गुनगुना रोज़ाना पिए।
2 . तुलसी की पत्तियां , गिलोय , अजवाइन , अनार , अदरक , दालचीनी , नारियल पानी का उपयोग करें । 
3. गुलाब जल आंखों में डालते रहें । 
4. आँवले का रस का प्रयोग करें । 
5. गुनगुने पानी में शहद का प्रयोग करें । 
6. आलू , पालक , गाजर का प्रयोग करते रहें । 
7. यदि संभव हो तो लक्षणों के शुरू होने के 48 घंटों के भीतर दवा शुरू करने पर दवा सबसे अच्छा कार्य करती हैं । 

यूनानी चिकित्सा __इन्फ्लूएंजा वायरस में यूनानी चिकित्सा बहुत ही कारगर साबित होती हैं , बदले में इनका कोई शारीरिक साईड इफेक्ट भी नहीं होता हैं इसलिए इन्फ्लूएंजा वायरस जनित रोगों में निम्न यूनानी चिकित्सा का प्रयोग करें __
1. इतरीफल उस्तोखुद्दुस
2. इतरीफल शाहतरा
3. शर्बत तूत स्याह
4. शर्बत अक्सीर सुआल या जुफा मुरक्कब
5. लऊक सपिस्ता ख्यार शंबरी
6. जवारीश अनारेन
7. कुश्ता मरजान
8.खमीरा मरवारीद या खमीरा खशखश या खमीरा बनाफ्शा
( नोट _कृपया दवा का प्रयोग किसी यूनानी चिकित्सक की देखरेख में ही करें )

एलोपैथिक चिकित्सा __कोई कारगर उपाय नहीं है एंटीबायोटिक लेने से दूसरे साईड इफेक्ट हो सकतें हैं । वैसे बुखार की दवा से बचना चाहिए फिर भी तेज़ बुखार आने पर पैरासिटामोल ले सकतें हैं । इसमें एंटीवायरल दवा ओसेल्टा मिविर ( टेमी फ्लू ) का उपयोग किया जाता हैं ।

डॉ. लियाकत अली मंसूरी
( न्यूरो यूनानी एवं हिजामा विशेषज्ञ 
   

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