जौनपुर। फसल अवशेष प्रबंधन उपाय अपनाएं,खेत और पर्यावरण को नुकसान होने से बचाएं

जौनपुर। कृषि विभाग द्वारा बुधवार को कलेक्ट्रेट स्थित प्रेक्षागृह में फसल अवशेष प्रबंधन कार्यक्रम योजना अंतर्गत जनपद स्तरीय गोष्ठी आयोजित की गई जहा किसानों को फसल अवशेष न जलाने के लिए प्रशिक्षित किया गया।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा ने कहा कि खेतों में फसल अवशेष जलाने से खेत की मिट्टी के साथ- साथ वातावरण पर भी दुष्प्रभाव पड़ते हैं। यथा : मृदा के तापमान  में वृद्धि, मृदा की सतह का सख्त होना, मुख्य पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश की उपलब्धता में कमी एवं अत्यधिक मात्रा में वायु प्रदूषण आदि जैसे नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। इसलिए किसानों को फसल अवशेष खेतों में कदापि नहीं जलाने चाहिए बल्कि इनका उपयोग मृदा की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए करना चाहिए। यदि इन अवशेषों को सही ढंग से खेती में उपयोग करें तो इसके द्वारा हम पोषक तत्वों के एक बहुत बड़े अंश की पूर्ति कर सकते हैं। मुख्य विकास अधिकारी साई सीलम तेजा ने बताया कि रबी फसलों हेतु कृषि निवेशों की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित कर ली गई है, पराली प्रबंधन हेतु ग्रामपंचायत वार जागरूकता पैदा कर पराली को मृदा में ही खाद बनाएं या गोआश्रय में भेजने का प्रबंध करें। कृषि वैज्ञानिक डा. सुरेश कुमार ने वेस्ट डी कंपोजर के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराई।साथ ही यह भी बताया कि 40 दिनों में कृषि अपशिष्ट, पशु अपशिष्ट, रसोई अपशिष्ट, शहर के अपशिष्ट जैसे सभी जैव अपघटन योग्य सामग्री को अपघटित कर अच्छी खाद का निर्माण कर देता है। परम्परागत विधियों से तुलना करे तो यह खाद बनाने की अब तक की सबसे तीव्र विधि है, जो जैविक खेती बढ़ावा देने हेतु सबसे महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती है। कृषि वैज्ञानिक डा. सुरेन्द्र प्रताप सोनकर ने सुपर सीडर से लाईन में गेहूँ की बुआई, उर्वरक प्रबंधन, जल प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण की जानकारी दी। कृषि बैज्ञानिक डा. अमित कुमार ने पशुओं के रखरखाव की जानकारी दिया। गोष्ठी को जिला कृषि अधिकारी, जिला उद्यान अधिकारी, मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने भी सम्बोधित किया। संचालन अपर जिला कृषि अधिकारी डा.रमेश चंद्र यादव ने किया। इस मौके पर उप संभागीय कृषि प्रसार अधिकारी डा. स्वाति पाहुजा, अमित कुमार तथा शरद पटेल, रजनीश सिंह, डा. जयन्त सिंह, चंद्रशेन सिंह, अमित परिहार, हवलदार आदि प्रगतिशील किसान मौजूद रहे। अन्त में आए हुए कृषकों का उप कृषि निदेशक जय प्रकाश ने आभार ज्ञापित किया।

 फसल अवशेष जलाने से नुकसान 

 1- फसल अवशेष को जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है।
 2-  खेत में केचुए मर जाते हैं ।
3- जमीन में लाभदायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है।

 4- फसलों की पैदावार में कमी आती है।

 फायदा - 
 1- खेत की जल धारण क्षमता बढ़ती है।

2- खेत में मैं जीवांश की मात्रा बढ़ती है।

3-  खेत उपजाऊ बनता है ।
4- फसलों की उपज बढ़ती है।
खेतों में फसल अवशेषों को कदापि न जलाए
पराली जलाने वाले किसान अनुदान से होंगे वंचित

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