क्या है तलाक-ए-हसन, जिस पर रोक लगाने की मुस्लिम महिला ने उठाई मांग
        गिरजा शंकर गुप्ता/ब्यूरों
    एक महिला ने 25 दिसंबर 2020 को मुस्लिम रीति-रिवाज से शादी की. दोनों का एक लड़का भी है. उसके पति ने उस पर दहेज देने का दबाव बनाया और जब दहेज नहीं दिया गया तो उसे बुरी तरह प्रताड़ित किया.
बाद में पति ने अपने वकील के जरिए उसे तलाक-ए-हसन के तहत तलाक दे दिया.

इसी तलाक-ए-हसन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई है. पीड़ित महिला ने इस पर रोक लगाने की मांग की है. पीड़ित महिला का दावा है कि उसके पति ने उस पर दहेज देने का दबाव डाला और जब मना कर दिया तो उसके पति और उसके परिवार वालों ने उसे टॉर्चर किया. महिला ने ये भी दावा किया है कि जब वो प्रेग्नेंट थी, तब भी उसे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया.

पीड़ित महिला ने याचिका लगाते हुए दावा किया है कि जब उसने दहेज देने से मना कर दिया तो उसके पति ने अपने वकील के जरिए तलाक-ए-हसन के तहत तलाक दे दिया. महिला ने तलाक-ए-हसन को मनमाना और तर्कहीन बताते हुए इस पर रोक लगाने की मांग की है, साथ ही ये भी कहा है कि ये आर्टिकल 14, 15, 21 और 25 के खिलाफ है.

तलाक-ए-हसन क्या है? ये जानने के लिए पहले ये समझना जरूरी है कि इस्लाम में तलाक की क्या व्यवस्था है? दरअसल, इस्लाम में तलाक देने के तीन तरीके हैं. पहला है तलाक-ए-अहसन, दूसरा है तलाक-ए-हसन और तीसरा है तलाक-ए-बिद्दत. अब इन तीन तरीकों में से एक तलाक-ए-बिद्दत गैरकानूनी बन चुका है. इसे आम भाषा में तीन तलाक भी कहा जाता है.

1. तलाक-ए-अहसनः इसमें शौहर बीवी को तब तलाक दे सकता है, जब उसका मासिक धर्म न चल रहा हो. इसे तीन महीने में वापस भी ले लिया जा सकता है, जिसे 'इद्दत' कहा जाता है. अगर इद्दत की अवधि खत्म होने के बाद भी तलाक वापस नहीं लिया जाता तो तलाक को स्थायी माना जाता है.

2. तलाक-ए-हसनः इसमें तीन महीने में तीन बार तलाक देना पड़ता है. ये तलाक बोलकर या लिखकर दिया जा सकता है. इसमें भी तलाक तभी दिया जाता है जब बीवी का मासिक धर्म न चल रहा हो. इसमें भी इद्दत की अवधि खत्म होने से पहले तलाक वापस ले सकते हैं. इस प्रक्रिया में तलाकशुदा शौहर और बीवी फिर से शादी कर सकते हैं, लेकिन ये तभी होता है जब बीवी किसी दूसरे व्यक्ति से शादी कर ले और उसे तलाक दे दे. इस प्रक्रिया को 'हलाला' कहा जाता है.

3. तलाक-ए-बिद्दतः इसमें शौहर, बीवी को एक ही बार में तीन बार बोलकर या लिखकर तलाक दे सकता है. तीन बार तलाक के बाद शादी तुरंत टूट जाती है. अब तीन तलाक देना गैर कानूनी है और ऐसा करने पर 3 साल तक की सजा का प्रावधान है. इस प्रक्रिया में भी तलाकशुदा शौहर-बीवी दोबारा शादी कर सकते थे, लेकिन उसके लिए हलाला की प्रक्रिया को अपनाया जाता है.

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क्या है ट्रिपल तलाक पर कानून?

- 2017 में सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की बेंच ने ट्रिपल तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को असंवैधानिक ठहराया. कोर्ट ने सरकार को तीन तलाक को रोकने के लिए कानून बनाने का आदेश दिया.

- सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सरकार ने दिसंबर 2017 में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) बिल पेश किया. ये बिल लोकसभा से तो पास हो गया, लेकिन राज्यसभा में अटक गया.

- इसके बाद 2019 में आम चुनाव के बाद सरकार ने कुछ संशोधन के साथ इस बिल को फिर पेश किया. इस बार ये बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों से पास हो गया.

- ये कानून तीन तलाक पर रोक लगाता है. तीन तलाक देने वाले दोषी पुरुष को 3 साल तक की सजा हो सकती है. इसके साथ ही पीड़ित महिला अपने और अपने नाबालिग बच्चे के लिए गुजारा भत्ता भी मांग सकती है.

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