सहूलियत देने वाला ई-रिक्शा क्यों बन गया समस्या ?
जनपद मुख्यालय पर सुगम यातायात व्यवस्था के लिए नासूर बने ई-रिक्शा, सिस्टम भी नाकाम; यहां लगता है झुंड

सड़कों पर बिना रजिस्ट्रेशन और नंबर प्लेट के नाबालिग दौड़ा रहे हैं ई-रिक्शा

        गिरजा शंकर विद्यार्थी ब्यूरों
अंबेडकरनगर। नीतियों के अभाव में बेतरतीब बढ़े ई-रिक्शे भले सुरक्षा की दृष्टि से उपयुक्त न हों लेकिन अपने खुलेपन के कारण आम जनता की पसंद बन गए. अब जरूरत चोट के नासूर बनने से पहले इलाज की है।सड़कों पर बेरोक-टोक नाबालिग चालक बिना नंबर प्लेट के ई-रिक्शा दौड़ा रहे हैं और लोगों की जान खतरे में डाल रहे हैं। यातायात और संभागीय परिवहन विभाग के अधिकारी इस पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं।मुख्य सड़कों पर सुगम यातायात व्यवस्था के लिए नासूर बन चुके ई-रिक्शा कभी भी आपके लिए हादसे का सबब बन सकते हैं। यूं तो मुख्य सड़क पर इनका संचालन प्रतिबंधित है लेकिन पुलिस और परिवहन विभाग की नाकाम कार्यप्रणाली इनके लिए वरदान बनी हुई है।
नंबर वाले एक रजिटर्ड रिक्शे की कीमत बाजार में औसत 1.10 से 1.50 लाख रुपए के बीच है. इसमें एक साल का इंश्योरेंस, रजिस्ट्रेशन, लाइसेंस बनवाने की लागत शामिल है. वहीं दूसरी ओर, बिना नंबर का ई-रिक्शा बाजार में 60 से 66,000 रु. में मिल जाता है. नगर वासियों का कहना है , "गैर कानूनी रिक्शे चलने के पीछे दो बड़ी वजह हैं. पहला, ज्यादातर ई-रिक्शे ठेकेदारों के हैं और दूसरा, कानून का सख्ती से पालन नहीं होना.''बड़ा सवाल यह है कि पुलिस की नाक के नीचे इतनी बड़ी संख्या में गैर-कानूनी ई-रिक्शे चल रहे हैं तो इन पर कार्रवाई क्यों नहीं होती? जानकारों का कहना है"सड़कों से ई-रिक्शा न हटने की सबसे बड़ी वजह स्क्रैप पॉलिसी का न होना है. पुलिस डिपार्टमेंट अगर सख्ती करके ई-रिक्शे जब्त कर भी लेता है तो इन्हें रखने की कोई व्यवस्था नहीं है. स्क्रैप पर कोई नीति न होने की वजह से इन्हें नष्ट भी नहीं किया जा सकता.''
पुलिस और परिवहन विभाग की नाकाम कार्यप्रणाली इनके लिए 'वरदान' बनी हुई है। झुंड बनाकर सड़क के बीचोंबीच तमाम नियम-कायदों को तोड़कर दौड़ने वाले ई-रिक्शा संचालकों को दूसरे वाहनों की परवाह नहीं होती। चाहे किसी की कार में साइड से टक्कर लगे या उनके पीछे जाम लग जाए। बिना इशारा दिए सड़क पर यू-टर्न लेना और कहीं भी रिक्शा घुमा देना, ई-रिक्शा चालकों की आदत बन गई है। कोई कार या दोपहिया चालक इनसे उलझ जाए तो उसकी खैर नहीं रहती। इनका 'कुनबा' मारपीट पर उतारू रहता है। प्रशासन कब इनका संचालन तय नियमों के अनुसार करा पाएगा, यह अब बड़ा सवाल बन चुका है।

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