जलवायु परिवर्तन और मिट्टी का ध्यान रखते हुए गेहूं की बुआई करें किसान

            गिरजा शंकर गुप्ता ब्यूरों
अम्बेडकर नगर। वर्तमान समय में गेहूं बुआई का कार्य जोरों पर चल रहा है। गेहूं की अगेती किस्म की बुआई की जा रही है। किसान इसकी खेती लंबे समय से पारंपरिक तरीके से करते आ रहें हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन तथा मिट्टी को ध्यान रखते हुए कुछ बात को ध्यान रखना होगा। क्योंकि गेहूं की खेती में मिट्टी तथा उर्वरक का प्रमुख स्थान होता है।

राजकीय कृषि बीज भंडार टांडा के प्रभारी किरण कुमार ने बताया कि किसान अक्सर गेहूं की खेती परम्परागत तरीके से करते हैं, जिसके कारण किसानों को खेती में खर्च ज्यादा हो जाता है। इसके बाबजूद उत्पादन में कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं होता है। गेहूं की खेती में मिट्टी का योगदान वैसे तो सभी फसल में मिट्टी का महत्वपूर्ण स्थान रहता है, लेकिन गेहूं की खेती की बात होती है तो थोड़ा मिट्टी के सेहत का ज्यादा ध्यान रखना होगा। किसानों को एक सलाह है की वह अपने खेत की मिट्टी की जांच जरूर करा लें। इससे मिट्टी के अनुसार फसल को चुनने में आसानी होगी। उर्वरक पर भी कम खर्च करना होगा।मिट्टी की क्षारीयता का रखें विशेष ध्यान: किसानों को मिट्टी की क्षारीयता को ध्यान रखना होगा, क्योंकि गेहूं की फसल पीएच मान 5 से 7.5 के बीच होती है। अगर मिट्टी की क्षारीयता पीएच मान 5 से कम तथा 7.5 से ज्यादा है तो गेहूं की बुआई उस मिट्टी में न करें। अगर इसके बावजूद गेहूं की फसल बोते हैं तो उत्पादन पर असर पड़ेगा। यदि मिट्टी में क्षारीयता बहुत ज्यादा है जैसे आठ से 10 के बीच तो किसान अपने खेत में सल्फर तथा जिप्सम का उपयोग करके क्षारीयता कम कर सकते हैं।
गेहूं की फसल में बीज की गहराई का स्थान महत्वपूर्ण: गेहूं की फसल में बीज की गहराई अंकुरण में महत्वपूर्ण स्थान है। अक्सर यह देखा गया है कि ट्रैक्टर चलाने वाले व्यक्ति को गेहूं की बीज कितनी गहराई पर बोया जाये यह मालूम नहीं रहता है। सभी फसल को एक ही गहराई पर बो देते हैं, जिससे गेहूं की अंकुरण कम होती है और फिर उत्पादन पर असर पड़ता है। गेहूं की छोटी प्रजाति के बीज को तीन से पांच सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए। बड़ी प्रजाति की बीज को पांच से सात सेमी की गहराई में बोना चाहिए। यह गहराई गेहूं की फसल के लिए उपयुक्त है। बीजों का कार्बाक्सिन, एजेटौवेक्टर व पीएसवी से उपचारित कर बुआई करें।
मिट्टी जांच के हिसाब से करें उर्वरक का प्रयोग: राजकीय कृषि बीज़ भंडार प्रभारी किरण कुमार ने बताया कि उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना उचित होता है। बौने गेहूं की अच्छी उपज के लिए मक्का, धान, ज्वार, बाजरा की खरीफ फसलों के बाद भूमि में 150:60:40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से तथा विलंब से 80:40:30 क्रमश: नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। डीएपी का प्रयोग जिस खेत में लगातार किया जा रहा है उनमें 30 किलोग्राम गंधक का प्रयोग लाभदायक रहेगा।

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