परिषदीय विद्यालय सोमवार को जब खुले तो बच्चों को भूखे पेट पढ़ाई करनी पड़ी। 100 स्कूलों में संस्था की तरफ से मिड डे मील (एमडीएम) ही नहीं भेजा गया। कई स्कूलों में हेडमास्टर तो कहीं सहायक अध्यापकों ने बच्चों को बिस्कुट और नमकीन देकर पढ़ाई कराई। कंपोजिट विद्यालय अर्दली बाजार, प्राथमिक विद्यालय मंडुवाडीह में तहरी बनवाई गई। प्राथमिक विद्यालय खारीकुआं में बच्चे खाना न मिलने की वजह से पहले ही निकल गए। यह कोई पहला मामला नहीं है जब स्वयं सेवी संस्था द्वारा बच्चों के मध्याह्न भोजन में शिकायत मिली है। सितंबर से लगातार संस्था द्वारा कभी बासी खाना तो कहीं रोटी की जगह नान भेजा जा रहा है। कभी-कभी तो बच्चों के मेन्यू में शामिल दूध और फल भी गायब रहते हैं। प्रधानमंत्री मिड डे मील का नाम बदलकर पीएम पोषण योजना कर चुके हैं। दूसरी ओर शासन की अधूरी तैयारी व विभागीय उदासीनता का खामियाजा बच्चों को झेलना पड़ रहा है। शासन ने नगर क्षेत्र के विद्यालयों में मध्याह्न भोजन की जिम्मेदारी स्वयंसेवी संस्था को तो दे दी। लेकिन संस्था स्कूलों तक खाना कैसे पहुंचा रही है। क्या वह खाना खाने योग्य है या नहीं इसकी जवाबदेही किसी के पास नहीं है।

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