काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री पं. दीपक मालवीय ने बताया कि परिवार में पुरुषों के न होने पर महिलाएं भी श्राद्धकर्म कर सकती हैं। इस बारे में धर्म सिंधु ग्रंथ के साथ ही मनुस्मृति, मार्कंडेय पुराण और गरुड़ पुराण में भी बताया गया है कि महिलाओं को तर्पण और पिंडदान करने का अधिकार है। इनके अलावा वाल्मीकि रामायण में भी बताया गया है कि सीताजी ने राजा दशरथ के लिए पिंडदान किया था।मार्कंडेय पुराण में कहा गया है कि अगर किसी का पुत्र न हो तो पत्नी ही बिना मंत्रों के श्राद्ध कर्म कर सकती है। पत्नी न हो तो कुल के किसी भी व्यक्ति द्वारा श्राद्ध किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य ग्रंथों में बताया गया है कि परिवार और कुल में कोई पुरुष न हो तो सास का पिंडदान बहू भी कर सकती है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि अगर घर में कोई बुजुर्ग महिला है तो युवा महिला से पहले श्राद्ध कर्म करने का अधिकार उसका होगा।महिलाएं श्राद्ध के लिए सफेद या पीले कपड़े पहन सकती हैं। केवल विवाहित महिलाओं को ही श्राद्ध करने का अधिकार है। श्राद्ध करते वक्त महिलाओं को कुश और जल के साथ तर्पण नहीं करना चाहिए। साथ ही काले तिल से भी तर्पण न करें। ऐसा करने का महिलाओं को अधिकार नहीं है।पुत्र या पति के नहीं होने पर कौन श्राद्ध कर सकता है, इस बारे में गरुड़ पुराण के 11वें अध्याय में बताया गया है कि ज्येष्ठ पुत्र या कनिष्ठ पुत्र के अभाव में बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एकमात्र पुत्री भी शामिल है। अगर पत्नी भी जीवित न हो तो सगा भाई अथवा भतीजा, भांजा, नाती, पोता आदि कोई भी श्राद्ध कर सकता है। इन सबके अभाव में शिष्य, मित्र, कोई भी रिश्तेदार अथवा कुल पुरोहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है। इस प्रकार परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य व्रत लेकर पितरों का श्राद्ध, तर्पण कर सकती है।

Post a Comment

If you have any doubts, please let me know

और नया पुराने