सुरेन्द्र शर्मा
अम्बेडकर नगर:-
कोरोना के खौफ से लॉकडाउन के दौरान जिदगी की ठहरी रफ्तार एक साल बाद फिर से अपनी पुरानी गति पर आ चुकी है। हालांकि 24 मार्च 2020 की वह शाम आज भी अविस्मरणीय है,
लॉकडाउन में सूनी सड़कों की फिजा फिर बदल गई है। लॉकडाउन खत्म होने के बाद फिर से सड़क पर तेज रफ्तार वाहन फर्राटा भर रहे हैं। एक बार फिर से बाजार गुलजार हो गए हैं। शहर में भीड़ के चलते फिर से जाम की स्थिति बनने लगी है।अकबरपुर शहर और कस्बा शहजादपुर के रोड पर ऑटो व ई-रिक्शा की रेलम-पेल फिर दिखने लगी है।कोरोना ने जहां काफी संख्या में हमारे अपनों को हमसे छीन लिया, लेकिन हमें जिदगी का एक नया फलसफा भी दिया। फिजिकल डिस्टेंसिग, पर्सनल हाइजीन जैसे शब्दों का महत्व भी समझाया। मास्क और सैनिटाइजर जैसे मासिक खरीदारी की सूची का हिस्सा बन गए। जिदगी ठहरी तो लोग घरों में कैद हुए, लेकिन इसी की बदौलत हमें स्वच्छ आकाश भी देखने को मिला। शहर से गांव तक स्वच्छता का संदेश स्वप्रेरणा बन गया। डिस-इनफेक्टेंट का छिड़काव लोग खुद करने लगे। जो मंहगा हाइपोक्लोराइड नहीं खरीद सके उन्होंने नीम के पत्तों का ही सहारा ले लिया।जिदगी की भाग-दौड़ में करीबी रिश्तों को भी समय न दे पाने वालों को कोरोना ने साथ रहने और एक दूसरे को समझने का अवसर दिया। एक दूसरे के साथ समय बीता तो रिश्तों में गर्माहट बढ़ी। एक दूसरे की जरूरतों का एहसास बढ़ा। पीढि़यों के बीच की मिठास बढ़ी। नई पीढ़ी को परंपरा और संस्कारों से रू-ब-रू होने का मौका मिला।रिश्वत, अन्याय और उत्पीड़न का पर्याय समझी जाने वाली खाकी के पीछे भी लॉकडाउन में मानवीयता देखने को मिली, मित्र पुलिस का चेहरा सामने आया। जरूरतमंदों की मदद को पुलिस ने कई जगह आगे बढ़कर मदद की। कई ने तो अपने पास से सहायता की।देश में कोरोना की दूसरी लहर की खबरें फिर से सिहरन फैलाने लगी हैं। जीवन की इस आपाधापी में हालांकि लोग कोरोना काल में सीखे मास्क और शारीरिक दूरी के नियमों को भूलने की गलती फिर करने लगे हैं। यह खतरनाक हो सकता है। अभी भी सतर्कता और सावधानी बरतनी होगी।
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