राजकुमार गुप्ता 
मथुरा। यूपी उपभोक्ता कल्याण परिषद के जिला उप सचिव विजय सिंघल ने ऑनलाइन गेम पर नियंत्रण के लिए कानून बनाए जाने की मांग की है। कियु की हमारे भारत मे ऑनलाइन गेम पर  नियंत्रण के लिए कानून बनाए जाने की मांग को लेकर हम  ब्रजभूमि समग्र विकास अभियान, मथुरा नागरिक मंच, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत (ब्रज प्रांत ),जिला उपभोक्ता सूचना केंद्र ,मथुरा आदि संगठनों के साथ समन्वय कर नागरिकों,छात्र, युवा वर्ग में कार्य कर रहे हैं तथा समाज में ऑनलाइन गेमिंग से होने वाले दुष्परिणामों को समाज तक पहुंचाने ,जन जागरण कर बताने का प्रयास कर रहे हैं कि उनके बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास खेल के मैदान में संभव है  ।
कोरोना काल के समय ऑनलाइन शिक्षा के लिए वरदान बने मोबाइल, लैपटॉप अब छात्रों के लिए लत बन गए हैं, हर समय हाथ में मोबाइल, क्लास की जगह ऑनलाइन खेल बाल मन व मस्तिष्क पर हावी हो रहा है, तकनीक ने हमें बहुत सी सुविधाएं दी हैं लेकिन सदुपयोग ना होने से उनका नुकसान भी उठाना पड़ रहा है lकोरोना काल में स्कूल बंद थे बच्चे खेलने के लिए बाहर भी नहीं जा रहे थे ऐसे में मोबाइल पर ऑनलाइन गेम ही समय व्यतीत करने का माध्यम था लेकिन मनोरंजन का यह साधन अब बुरी लत में तब्दील हो गया है ।ऑनलाइन की लत नशीले पदार्थ के सेवन से कम खतरनाक नहीं है इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन  ने इसे मानसिक बीमारियों की सूची में शामिल किया है ।समाज में प्रतिदिन ऐसे विभिन्न प्रकार के उदाहरण आते हैं जहां बच्चे इससे ग्रसित होकर अपना जीवन नष्ट कर रहे हैं । घंटों ऑनलाइन गेम खेलने से बच्चों को न केवल शारीरिक वल्कि मानसिक रूप से भी नुकसान पहुंच रहा है ।इसके कई नाम है जैसे इंटरनेट पर ऑनलाइन गेम की लत या गेमिंग एडिक्शन । नशीले पदार्थ का सेवन करने पर वह शरीर के अंदर जाकर नुकसान पहुंचाता है जबकि ऑनलाइन गेम की लत में दूसरी तरह का असर मन मस्तिष्क पर होता है मोबाइल के साथ में घंटे रहकर बच्चे उस पर निर्भर हो जाते हैं तथा मन पर काबू नहीं रख पाते, बस हर पल गेम खेलते रहना चाहते हैं इस वजह से पढ़ाई में भी उनका मन नहीं लगता । कई ऑनलाइन गेम ऐसे हैं जो बच्चों को आक्रामक बना रहे हैं उससे अपराधिक प्रवृत्ति बढ़ती है साथ ही ऑनलाइन गेम से बच्चों में गणना करने की क्षमता ,दिमाग,हाथ  व आंख के साथ संतुलन क्षमता कम होती जा रही है जो आगे चलकर एक बड़ी बीमारी बन जाती है ।इसलिए  समय का ध्यान रखना बहुत जरूरी है । आधुनिक शिक्षा के इस युग में बच्चे औसतन 5 से 10 घंटे मोबाइल व इंटरनेट पर व्यतीत करने के कारण उनके जीवन शैली बिगड़ रही है, उनकी आंखों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है, खाने-पीने तक का उन्हें ध्यान नहीं रहता ,कुछ बच्चे तो खाना खाते समय भी मोबाइल पर वीडियो देख रहे होते हैं ,नींद पूरी नहीं होने से कई बच्चे धीरे-धीरे मानसिक तनाव अवसर से पीड़ित हो जाते हैं, लत लगने के बाद यदि  ऑनलाइन गेम या वीडियो गेम देखने से मना किया जाए तो उनमें चिड़चिड़ापन होने लगता है और वह आक्रामक हो जाते हैं ,मोबाइल के बिना उन्हें घबराहट और बेचैनी होने लगती है ।कई माता-पिता को पता ही नहीं चलता कि यह ऑनलाइन गेम की लत का परिणाम है ।
यह एक सामाजिक समस्या के रूप में सामने है तथा इसके समाधान के लिए सामाजिक चिन्तक, मनोवैज्ञानिक, डॉक्टर आदि सभी वर्गों के जागरूक  नागरिकों की नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी है कि वह संवाद और समन्वय के माध्यम से इसको शासन और प्रशासन तक पहुंचाएं ।अनौपचारिक रूप से चर्चा करने के साथ ही उद्देश्य परक समय बद्ध तरीके से इस क्षेत्र में प्रयास किया जाए ताकि हमारी आने वाले पीढ़ी का भविष्य सुरक्षित रह सके यह हम सब की जिम्मेदारी है हमारा सभी जागरूक महानुभावों से विनम्र आग्रह है कि वह इस संबंध में सकारात्मक एवं कठोर कदम उठाने के लिए भारत के भविष्य को देखते हुए और उसे सुरक्षित रखते हुए ऑनलाइन खेल के दुष्परिणामों को रोकने हेतु किए जा रहे प्रयासों में अपना रचनात्मक मार्गदर्शन व सहयोग प्रदान कर अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने का अनुग्रह करें।

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