पुस्तक: एक देश बारह दुनिया
लेखक: शिरीष खरे
(हाशिये से छूटे भारत की तस्वीर)
प्रकाशन वर्ष: 2021
सम्मान: स्वयं प्रकाश स्मृति सम्मान और कलिंग साहित्य महोत्सव सम्मान
संस्करण: तीन

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शिरीष खरे का रिपोर्ताज़ लेखन एक साथ वैचारिक और साहित्यिक कसौटियों पर खरा उतरता है। उनकी पुस्तक ‘एक देश बारह दुनिया’ उस लेखन परम्परा का विकास है जो रांगेय राघव, अमृत राय और स्वयं प्रकाश जैसे लेखकों ने निर्मित की है। यह सामाजिक सरोकारों वाला ऐसा समर्थ गद्य है जो कथेतर लेखन को भी ऊंचाई देने वाला है।- काशीनाथ सिंह

‘एक देश बारह दुनिया’ की अनुशंसा में कहा कि स्वयं प्रकाश अपने कहानी लेखन के साथ साथ कथेतर लेखन में जिन सामाजिक सरोकारों के लिए सृजनरत रहे उन्हीं सरोकारों को खरे की इस कृति में देखना आश्वस्तिप्रद है।- राजेश जोशी

जब मुख्यधारा की मीडिया में अदृश्य संकटग्रस्त क्षेत्रों की ज़मीनी सच्चाई वाले रिपोर्ताज लगभग गायब हो गए हैं तब इस पुस्तक का सम्बन्ध एक बड़ी जनसंख्या को छूते देश के इलाकों से है जिसमें शिरीष खरे ने विशेषकर गाँवों की त्रासदी, उम्मीद और उथल-पुथल की परत-दर-परत पड़ताल की है।-  हर्ष मंदर

यह देश-देहात के मौजूदा और भावी संकटों से संबंधित नया तथा ज़रूरी दस्तावेज़ है।-  आनंद पटवर्धन

इक्कीसवीं सदी के मेट्रो-बुलेट ट्रेन के भारत में विभिन्न प्रदेशों के वंचित जनों की ज़िन्दगियों के किस्से एक बिलकुल दूसरे ही हिन्दुस्तान को पेश करते हैं, हिन्दुस्तान जो स्थिर है, गतिहीन है और बिलकुल ठहरा हुआ है।-  रामशरण जोशी


यह भारत की ऐसी तस्वीर है जो छिपाई जाती है, लेकिन जिसे फ्रंट पर होनी चाहिए। इसमें अदृश्य देश के लोगों की ऐसी आवाज़ों को शामिल किया गया है जिन्हें अक्सर अनसुना किया जाता है, लेकिन जिन्हें बड़े इत्मीनान और ध्यान से सुनने की ज़रूरत है। इनका सरोकार उन स्थानों से है जिनके बारे में हो सकता है कि लोगों ने सुना भी हो, लेकिन शायद वे वहाँ पहुँचने से रह गए हों। इसमें उन समुदायों के किस्से हैं जिन्हें कभी विकास, कभी आधुनिकता तो कभी परिवर्तन के नाम पर पहले से अधिक हाशिये पर धकेल दिया गया है। यही किस्से तो हमें और आपको जीवन की संवेदनशीलता से जोड़ते हैं। दरअसल, यह एक-दूसरे से बहुत दूर की दुनियाओं में रहने वाले वंचितों के दुख, तकलीफ़, संघर्ष, प्यार, उनकी ख़ुशियों और उम्मीदों का अलग-अलग यथार्थ है जिसे देख लगता है कि क्या यह एक ही देश है!

यहाँ इस एक देश से कुल बारह रिपोर्ताज़ हैं जो पत्रकारिता के दौरान अलग-अलग वर्षों में विभिन्न राज्यों से खोजी गईं न्यूज़ स्टोरीज़ का नतीज़ा है। यहाँ मैंने उन्हीं सपाट सूचनाओं के सहारे विश्वसनीय विवरणों के साथ गहराई में उतरने और लोगों के अनुभवों का दस्तावेज़ बनाने की कोशिश की है। ऐसा इसलिए कि कई बार किसी आदमी से जुड़ी कोई घटना के बारे में समाचारों में कुछ नहीं कहा जाता है, लेकिन जिसे कहने की सबसे अधिक ज़रूरत लगने लगती है। इनमें सच्ची कहानियाँ हैं। यहाँ तक कि अधिकाँश पात्र और स्थानों के नामों को भी ज्यों का त्यों रखा गया है।
 
लेखक ने साल-दर-साल इन बारह तरह की दुनियाओं को नापने के लिए यातायात के सस्ते और सार्वजनिक साधनों का सहारा लिया। इस दौरान उन्हें महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, कर्नाटक, बुंदेलखंड और राजस्थान के थार तथा कई जनजातीय अँचलों में स्थानीय लोगों के साथ लंबा समय बिताने का बढ़िया मौका मिला। वहीं, भिन्न-भिन्न बोली और भाषाएँ बोलने वाले लोगों के साथ संवाद स्थापित करना अपनेआप में एक अनूठा अनुभव रहा। हर ज़गह समकालीन भारत की बेचैनी और विकट परिस्थितियों को सामूहिक चेतना का हिस्सा नजर आता है। हर एक दुनिया के अधिक से अधिक भीतर तक वहाँ की सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक संकटों की परतों को खोलती हुई दिखती हैं।

लेखक का परिचय
शिरीष खरे का जन्म मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के आदिवासी बहुल गांव मदनपुर में 24 अक्टूबर, 1981 को हुआ। शिरीष पिछले दो दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय पीड़ित समुदायों के पक्ष में लिखते रहे हैं। 'राजस्थान पत्रिका' और 'तहलका' सहित अन्य संस्थानों में रहते हुए हजार से अधिक प्रकाशित रिपोर्ट। भारत के सात सौ से अधिक गांवों के बारे में लिखित सामग्री। भारतीय गांवों पर उत्कृष्ट रिपोर्टिंग के लिए वर्ष 2013 में 'भारतीय प्रेस परिषद' द्वारा सम्मानित। वर्ष 2009, 2013 और 2020 में 'संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष' द्वारा लैंगिक संवेदनशीलता पर न्यूज स्टोरीज के लिए 'लाडली मीडिया अवार्ड' सहित सात राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार। 'एक देश बारह दुनिया' के अलावा खोजी पत्रकारिता पर 'तहकीकात' और स्कूली शिक्षा पर 'उम्मीद की पाठशाला' किताबें प्रकाशित। संपर्क: kharealert24@gmail.com

'एक देश बारह दुनिया' पर चुनिंदा समीक्षाएं
अछूते, अदेखे सच का मार्मिक आख्यान- आज तक
हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीर- आउटलुक
विकास की वास्तविकता पर ग्रामीण भारत का शोध-विवेचन- अमर उजाला
स्थिर, गतिहीन और ठहरे हिन्दुस्तान का दर्द- दैनिक जागरण
भूख से दम तोड़ते बच्चों की हैरान कर देने वाली कहानी- लल्लनटॉप
मौजूदा और भावी संकटों से संबंधित दस्तावेज- न्यूजलॉन्ड्री
विकास की मार से त्रस्त आम भारतीयों की मार्मिक कराह- लोकमत हिन्दी
रेखाचित्र, जो हमारी संवेदनाओं को गहरे तक झकझोरती और समृद्ध भी करती है- द प्रिंट
एक अलग हिंदुस्तान का पता बताती हैं- राजस्थान पत्रिका
पिछड़े और वंचितों की सच्चाई का बयान- अहा! ज़िंदगी, दैनिक भास्कर
हर अध्याय हमें एक नई दुनिया में ले जाता है- नवभारत टाइम्स
डिजिटल वर्ल्ड से कटे हिन्दुस्तान का दर्द!- राष्ट्रीय सहारा
चुप कर दी गई उपेक्षितों की आवाज तथा गाँवों की त्रासदी और उथल-पुथल की पड़ताल- प्रभात खबर
पत्रकारिता में रिपोर्ताज विधा अब लुप्तप्राय है, इस लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण पुस्तक- हिंदुस्तान
फर्क नहीं पड़े जाने का इतिहास' लिखा जाएगा, तब ऐसी किताबें दस्तावेज बन जाएंगी- एनडीटीवी
गांधी के आखिरी आदमी की खरी आवाज़ है "एक देश बारह दुनिया"- न्यूज18
'कितने हिन्दुस्तान'?- दैनिक ट्रिब्यून
ग्राउंड जीरो पत्रकारिता का उत्कृष्ट उदाहरण है- दी क्विंट

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