तीर्थराज प्रयाग में संगम तट पर हर साल लगने वाला माघ मेला हो या छह साल पर लगने वाला अर्धकुंभ अथवा बारह साल पर लगने वाला कुंभ, भूले-भटके शिविर इन मेलों में अपनों से बिछड़ गए लोगों को मिलाने का काम वर्षों से शिद्दत से करता चला आ रहा है। इस पुनीत कार्य की शुरूआत स्व. पं. राजाराम तिवारी ने सन् 1946 में की थी, तब से बिछड़ों को मिलाने का कार्य अनवरत जारी है।

कुंभ की एक घटना ने दिया था भूले-भटके शिविर को जन्म

मूल रूप से प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले राजाराम तिवारी ने भूले-भटके शिविर की स्थापना की थी। उनके पुत्र उमेश चंद्र तिवारी ने बताया कि पिता जी 16 साल की उम्र में कुंभ मेला में घूमने आए थे। इसी दौरान मुलाकात एक वृद्ध महिला से हुई जो मेले में आए अपने परिवार से बिछड़ गई थी। वह अपने स्वजनों से मिलने के लिए काफी परेशान थी। पिता जी को उक्त महिला की परेशानी देखी नहीं गई तो उन्होंने महिला को उसके परिवार से मिलाने के लिए मेले में हर जगह को छान मारा जहां पर परिवार के मिलने की संभावना थी। काफी प्रयास के बाद उन्हें उस जगह का पता चला जहां पर महिला के स्वजन ठहरे हुए थे।

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