मुस्कुरा कर जवाब देते हैं
--------------------------------
शाम देते हैं ,सुबह देते हैं
जाने क्यों बेहिसाब देते हैं,
मुश्किलों से घिरे सवालों का
मुस्कुरा कर जवाब देते हैं!
नख से शिख तक मानों
जड़े हों अंग अंग में नग
बिना जलाए दीपक के भी,
रहता है घर उसका जगमग।
तुम बहुत खूबसूरत हो
लगती अजंता की मूरत हो
तुम मानों या न मानों पर
सच में तुम मेरी जरूरत हो!
लोग कहते हैं चांद को हसीं
लगता है नादान हैं वे सभी
भूल जाएगा चांद को देखना
जो देख लेगा तुमको कभी
लेकर चलती हूँ तुम्हें
गुजरे सुनहरे पलो में
साथ-साथ हम घूमा करते
सुन्दर गगन के तले!
कभी नदी की तलहटी में
झांका करती अपनी परछाई
कभी लहरों संग डोला करती
लेती लहरों संग अंगडाई!
कभी खेलते सोंधी मिट्टी में
लगा लेते कभी फिर चंदन
कभी फूलों को मुरझाया देखा
रंगत समाई जिसकी प्रति अंग!
बीत गये अब वो क्षण सुहावने
लगते थे जो हमें बडे़ लुभावने
हृदय में यादों की बारात से,
गूँज रहे सुर वो मनभावने!
बीती यादों का उमडा है सैलाब
जीवन का होने वाला है बिखराव
झकझोर रहीं हैं मन को यादें
धूम मचाती कितनी बातें!
प्रियंका द्विवेदी
मंझनपुर कौशाम्बी
एक टिप्पणी भेजें
If you have any doubts, please let me know