उतरौला बलरामपुर- नवरात्रि के पावन पर्व पर पूरा नगर मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की भक्ति में रंगारंग हो रहा है। इसी श्रद्धा-सागर का सबसे प्रमुख तीर्थ है नगर के मध्य राजमार्ग से सटे मोहल्ला गांधी नगर में स्थित श्री ज्वाला महारानी मन्दिर, जिसे उतरौला राज्य का सबसे प्राचीन और चमत्कारी मन्दिर माना जाता है। भक्तों का मान्यता है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है, इसलिए नवरात्र के दिनों में यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ता है।मन्दिर की स्थापना का सटीक काल ज्ञात नहीं, लेकिन किंवदंतियां बताती जाती हैं कि यह स्थल मुस्लिम शासन काल से  पहले का है। कथा के अनुसार, जब राजा दक्ष ने भगवान शिव का अप मान किया तो उनकी पत्नी सती ने यज्ञ-कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। सती के वियोग में भगवान शिव ने ब्रह्माण्ड में तांडव किया। ब्रह्माण्ड को संतुलित करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्श न चक्र से सती के शरीर को खंड-खंड किया। कहा जाता है कि देवी सती के शरीर सेनिकली अग्नि-ज्वाला इस स्थान पर गिरी और धरती को भेदकर पाताल तक चली गई। उसी दिव्य ज्वाला की स्मृति में यहां मां ज्वाला देवी की उपासना शुरू हुई और यह स्थान शक्ति-पीठ जैसा पूजनीय बन गया।
प्रारम्भिक काल में यह मन्दिर आकार में छोटा था। समय के साथ स्थानीय श्रद्धालु ननकू राम बैजनाथ की धर्म पत्नी सम्पदा देवी उर्फ़ भुजईन दाई ने इसका व्यापक पुनरुद्धार कराया। बाद में वर्तमान व्यवस्थापक अमर चन्द्र गुप्त ने स्थानीय भक्तों और उच्च कोटि के कारीगरों के सहयोग से मन्दिर का जीर्णोद्धार कर इसे भव्य और आकर्षक स्वरूप प्रदान किया। आज मन्दिर का शिखर दूर से ही नगर वासियों और आगंतुकों को आस्था का सन्देश देता है।मन्दिर परिसर में एक पुजारी प्रतिदिन नियमित रूप से पूजा- अर्चना करता है।विशेष ता यह है कि मन्दिर के शीर्ष छोर पर लगे ग्रामो फोन से प्रातः और सायं देवी-गान तथा भजन गूंजते हैं, जो वातावरण को और अधिक आध्या त्मिक बना देता हैं। श्रद्धालु प्रतिदिन सुबह और शाम जल, पुष्प, नारियल तथा प्रसाद अर्पित कर मां से मनो वांछित फल की प्रार्थना करते हैं। सोमवार और शुक्रवार को विशेष रूप से भीड़ रहती है,क्योंकि मान्यता है कि इन दिनों कड़ाह प्रसाद चढ़ाने से मां शीघ्र प्रसन्न होती हैं।
नवरात्रि में मन्दिर का दृश्य अद्भुत हो जाता है। मुख्य द्वार और गर्भ गृह को फूलों, झालरों और रोशनी से सजाया जाता है। दुर्गा सप्तशती के पाठ, अखण्ड ज्योति और भजन-कीर्तन से पूरा परिसर गुंजायमान रहता है। दूर-दराज़ से आने वाले श्रद्धालु मां के दर्शन कर अपनी मनोकामनाएं व्यक्त करते हैं। कई भक्त नौ दिनों का व्रत रखकर कन्या-पूजन के साथ अनुष्ठान पूर्ण करते हैं।
स्थानीय लोगों का विश्वा स है कि यहां मांगी गई हर प्रार्थना पूरी होती हैं।चाहे वह परिवारिक सुख हो,संतान-सौभाग्य हो या व्यापार में उन्नति। यही कारण है कि ज्वा ला महारानी मन्दिर केवल उतरौला ही नहीं, आस पास के जिलों और पड़ोसी राज्यों के भक्तों के लिए भी शक्ति का महत्वपूर्ण केन्द्र बन चुका है।नवरात्र के इन पावन दिनों में जब नगर वासियों के घर-आंगन में मां दुर्गा के स्वरूप विराजमान हैं, ज्वाला महारानी मन्दिर अदम्य आस्था और सनातन परम्परा का जीता- जाग ता एक उदाहरण भी है। जिससे श्रद्धालुओं को भी आकर्षित कर रहा है।

        हिन्दी संवाद न्यूज से
       असगर अली की खबर
         उतरौला बलरामपुर। 

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