प्रयागराज के पंडों के पास मुगल एवं अंग्रेजों के पहले के शासकों की वंशावली रखी है। जो भी राजा महाराजा प्रयाग के संगम तट पर आए उनका विवरण यहां के तीर्थ पुरोहितों के पास सुरक्षित है। प्राचीन समय में अधिकांश राजा या जमींदार अपने पुरोहितों को साथ में लेकर चलते थे। यह पुरोहित समय के साथ प्रयाग के ही होकर रह गए। भगवान राम को भी पूजा कराने वाले अयोध्या से आए पंडों के वंशज भी प्रयाग में ही रह गए। यह पंडा परिवार दारागंज एवं चौखड़ी कीडगंज में रहता है।
लंका विजय के बाद अयोध्या लौटते समय गंगा में किया था स्नान
प्रयागवाला सभा के मंत्री रहे मधु चकहा बताते हैं कि भगवान राम को पूजा अर्चना करने वाला परिवार चौखंडी बारह खंभा में रहता है। तीर्थ पुरोहितों का ऐसा मानना है कि मिश्र परिवार ने भगवान राम को पूजा कराई थी। इस परिवार में माधोराज वैद्य एवं लाल वीरेंद्र आदि शामिल हैं। चकहा बताते हैं कि भगवान राम ने लंका विजय के बाद अयोध्या वापसी में गंगा में स्नान किया था। उस समय जिन पुरोहितों ने पूजा अर्चना कराई थी वे कवीरापुर, बट्टपर अयोध्या के निवासी थे। उस दौरान भगवान राम ने जिस स्थान पर स्नान किया था उसका नाम राम घाट पड़ गया। राम घाट का अस्तित्व आज भी है। देवोत्थान एकादशी के दिन प्रयागवाल सभा यहां हर साल उत्सव मनाता है। साथ में राम यात्रा भी निकाली जाती
महात्मा गांधी, नेहरू एवं सरदार पटेल ने भी की थी पूजा अर्चना
तीर्थ पुरोहित राजीव भारद्वाज बताते हैं कि संगम में महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार बल्लभ भाई पटेल एवं डाक्टर राजेंद्र प्रसाद आदि ने पूजा अर्चना की थी। इनके यहां आने के तारीख एवं दस्तावेज पंडों के पास सुरक्षित हैं। वे कहते है कि तीर्थ यात्री और पंडों का संबंध गुरू-शिष्य जैसा रहता है। वैसे भी हमारा श्रद्धालुओं से भावनात्मक संबंध रहता है।
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