अपनी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने के उद्देश्य से साकार फाउंडेशन लोकसंगीत संध्या का आयोजन प्रति माह करती है । लोकसंगीत संध्या में इस बार हिंदू पंचांग के पाक्षिक त्योहारों को प्रमुखता दी गई । यह आयोजन दिनांक 27 मई को शाम 4बजे से JC गेस्ट हाउस में हुआ । लगभग 75 महिलाओं ने इसमें बढ़ चढ़ कर प्रतिभाग किया । 
आज की मुख्य अतिथि  श्रीमती पद्मा गिदवानी रहीं।
संस्था की सचिव एवम प्रख्यात लोकगायिका प्रीति लाल ने संध्या का शुभारंभ विनायक चतुर्थी के उपलक्ष्य में प्रथम पूज्य देव गणेश वंदना "हे गजवदन गौरी के नंदन ऐहौ री ऐहौ मोर अंगना- वट सावित्री पूजन  के उपलक्ष्य में सुहागगीत सबको सुहाग दिए जाना मइया जब आना भवनवा मां गाया,इसके बाद शशि गुप्ता ने देवी गीत - "मइया आना बारंबार हमारे अंगना", फिर रश्मि उपाध्याय ने बधावा गीत "सिया को जन्म भयो है "गाया फिर सुधा द्विवेदी ने "मोरे राजा छतरिया लगाओ की रस कै बूंद पड़ी " फिर माधुरी सिंह ने किसानी गीत - "पीले पीले फूलवा में हरी हरी पतियॉ कि निक लागे " इसके बाद अंजलि सिंह ने पनघट गीत -"भरन चली रे पनघट पे गगरिया" ,प्रियंका दीक्षित ने 
"बूंदें भीजे मोरी सारी मै कैसे आऊं",सुमति मिश्र ने - "छपा दिए हैं कार्ड बन्ने की शादी के", मंजुला श्रीवास्तव ने - "मेरे प्यारे सैयां मै तेरी जिंजर मेल हूँ ", मीरा तिवारी ने "जनकपुर जाना ए दूनो भइया " ,गीता निगम , शशिप्रभा सिंह ने "रस घोल घोल पियवा की बोलिया लागेला" साधना कपूर ने नकटा गीत -"दिन भर चाहे जहां रहियो हमार पिया
रात घर चले अहियो हमार पिया" , सुमन शर्मा ने "नदिया बहे जोर से" इसके बाद क्रमशः ममता जिंदल,सुरभि श्रीवास्तव,सरिता अग्रवाल,अमरावती वर्मा    अपने अपने मधुर स्वरों में लोकगीत गाकर दर्शकों का मन मोह लिया । वहीं   दीपिका और रूपिका ने 
सैयां मिले लड़कईयां मैं का करू पर जोरदार नृत्य कर दर्शकों की तालियां बटोरीं।

रेडियो जयघोष की आर जे समरीन सिद्धिकी ने कार्यक्रम का शानदार संचालन किया।
कीबोर्ड पर अरविंद वर्मा , ढोलक पर आजाद खान ने, ऑक्टोपैड पर दीपक बाजपेई ने शानदार संगत की।
सभा के अंत में साकार फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री नीलमणि लाल ने आए हुए समस्त अतिथियों को तुलसी का पौधा भेंट किया । संस्था की अध्यक्ष लोकगायिका प्रीति लाल ने कहा कि इस प्रकार के आयोजन होते रहने चाहिए इससे हमारी आने वाली पीढ़ी जानेगी की हिंदू पंचांग के अनुसार हमारे कौन कौन से त्योहार हैं ,और उनसे संबंधित गीत क्या हैं , हमारी पुरातन संस्कृति क्या थी ,और आज के प्रवेश में हमे इसको जीवित रखना क्यों आवश्यक है ।

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