जानकारी: हास्टल तलाशते वक्त रखें इन बातों का ख्याल


"कहते हैं कि घर से बाहर घर नहीं मिलता" लेकिन कोशिश और उम्मीद पर ही दुनिया क़ायम है, इसलिए हॉस्टल रूपी घर में सुकून तलाशने के लिए ये दोनों ही करना बेहतर है। आज बात हो रही है आपके बच्चों के आगे की पढ़ाई के लिए नए शहर जाने और वहां हॉस्टल में एक नई शुरुआत करने की, तो चलिए जानते हैं इस बारे में क्या कुछ किया जा सकता है।
सुरक्षा हैं जरुरी 
ये शुरुआत बच्चों और पैरेंट्स दोनों के लिए ही नई होती है। मन में सबसे ज़्यादा दुविधाएं होती हैं सुरक्षा को लेकर, यह अहम भी है। इस मामले में फिलहाल सबसे अहम बात है कोविड प्रोटोकॉल फॉलो करने की। वैसे तो इंस्टीट्यूशंस इस मामले में ख़ुद ही निर्देश जारी करते हैं, लेकिन आपको भी पूछने का पूरा हक़ है, झिझकें नहीं।
इसके अलावा बायोमेट्रिक अटेंडेंस, खाने की विविधताएं (वेज-नॉनवेज), कैंपस का प्रबंधन और सफ़ाई, गार्ड्स की व्यवस्था जान लेना ज़रूरी है।

रुम का चयन
अधिकतर हॉस्टल्स में एक सैंपल रूम तैयार कर लिया जाता है, ताकि पैरेंट्स इसे देखकर बच्चे की होने वाली रिहाइश का अंदाज़ लगा सकें और पैरेंट्स को हॉस्टल दिखाए जाने की ज़हमत से बचा जा सके। हॉस्टल ज्वॉइन करने से पहले बच्चे के साथ यह तय कर लें कि वह सिंगल, डबल या ट्रिपल शेयरिंग रूम में से क्या पसंद करेगा। एसी या नॉन एसी रूम के बारे में भी बात करें। रूम की पसंद काफ़ी हद तक बच्चे की घुलने-मिलने और शेयरिंग की आदतों पर भी निर्भर करती है। अगर बच्चा प्राइवेसी पसंद करता है, तो मुमकिन है शेयरिंग पसंद न करे। हालांकि रूममेट के साथ रहने का अलग ही आनंद है, कौन जाने कि भविष्य में इन्हीं में से कोई आपके बच्चे का जिगरी यार बन जाए।

सुविधाए भी जान लें
जब बात सुविधाओं की आती है तो बात शुरू होती है घर में सहजता से मिली सुविधाओं की जिसे अमूमन बच्चे ‘बेसिक्स’ का नाम देते हैं। लेकिन यही बेसिक्स घर से बाहर निकलते ही ‘एसेंशियल्स’ यानी ज़रूरत के दायरे में आ जाते हैं। इसमें वाय-फाय, हाउसकीपिंग, लॉन्ड्री सर्विस, नहाने का गर्म पानी, चार्जिंग पॉइंट्स, विंडो नेट्स, ए.सी, एक अलमारी और सबसे अहम चीज़ स्टडी टेबल शामिल है।
खान-पान की जानकारी
किसी भी शख़्स के तन और मन से ख़ुश रहने में सबसे महती भूमिका निभाता है खान-पान। वैसे तो खाने की गुणवत्ता जांचना हमारे दायरे में नहीं आता, फिर भी सीनियर स्टूडेंट्स, पहचान के पढ़ने वालों और कैंटीन मैनेजमेंट से जुड़े लोगों से बात करके मोटा-मोटा अंदाज़ा लगा सकते हैं। अमूमन जगहों पर नाश्ता, दोपहर का भोजन, रात का खाना मिलने का वक़्त दो से ढाई घंटे के बीच रखा जाता है। वक़्त रहते भरपेट भोजन करने के लिए आपको ये पता होना बेहद ज़रूरी है।

पैसों का लेखा-जोखा 

पहली बार घर से बाहर जाने से पहले बच्चे का बैंक एकाउंट ज़रूर खुलवा दें और बेसिक बैंक ट्रांजैक्शंस से उसको अवगत करवाएं।
चूंकि यूपीआई पेमेंट्स का चलन बढ़ चुका है, तो उसे एक ऐसे माध्यम से ज़रूर जोड़ें।
लेकिन यह ज़रूर बताएं कि पॉकेट में कुछ कैश हमेशा रखा होना चाहिए। वरना मुमकिन है कि कुछ वक़्त के लिए कोई अहम काम अटक जाए।
बच्चे को जहां सीमा में रहते हुए पॉकेट मनी दें, वहीं उसको समझाएं कि इसमें से थोड़ा ही सही लेकिन कुछ पैसा महीना पूरा होने तक एकाउंट में ज़रूर बचाए।  ठनठन गोपाल होने की आदत से बचे।
बच्चे वीकेंड्स पर फ्रेंड्स के साथ ज़रूर बाहर जाते हैं, ऐसे में कॉन्ट्री करना बेहतर है। लेकिन बच्चे का जितना ध्यान अपने पैसों का शेयर दूसरों से वापस लेने का हो, उतना ही ख़्याल वह दूसरे का वापस करने का भी रखे।
स्टार फैकट
नई जगह पर नए दोस्त बनाते वक़्त ‘नो इमीडिएट कनेक्शन - नो इमीडिएट एक्शन’ का बेसिक रूल बतलाइए। यानी न फौरन किसी को बेहतरीन दोस्त समझ लीजिए, न ही फौरन उसको बुरा समझकर दोस्ती ख़त्म कर दीजिए।

ये न भूलें
बच्चों को यक़ीन दिलाएं कि दूर होने के बावजूद आप उनसे सिर्फ़ एक फोन की दूरी पर हैं। बच्चे को बताएं कि उसका शौक चाहे पेंटिंग, फिटनेस, पढ़ना, वाद्य यंत्र बजाना या कुछ भी हो, वह उसे हॉस्टल में भी जारी रखे। बेसिक फर्स्ट एड किट ज़रूर साथ में दें, बेहतर हो कि इस बॉक्स में एक काग़ज पर लिख दें कि किस बीमारी में क्या बेिसक दवा ली जाए। हालांकि डॉक्टर को ज़रूर दिखाया जाए। बच्चों को उनके नए माहौल में अकेला न छोड़ें, रोज़ बातचीत बनाए रखें।

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