*चिन्तामनी फाउन्डेसन*
हमने संकल्पीत होकर संस्थागत रूप से वृक्षारोपण महायज्ञ की शुरुवात गंगा दशहरा से प्रारम्भ की है जिसमे 100008 वृक्षारोपण जिसमे मुख्य रूप से पीपल को प्राथमिता दी गयी है संस्था प्रमुख प्रियेश दुबे आजाद ने बताया की पीपल को हमारी भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है तथा अनेक पर्वों पर इसकी पूजा की जाती है। बरगद और गूलर वृक्ष की भाँति इसके पुष्प भी गुप्त रहते हैं अतः इसे 'गुह्यपुष्पक' भी कहा जाता है। अन्य क्षीरी (दूध वाले) वृक्षों की तरह पीपल भी दीर्घायु होता है।[1] इसके फल बरगद-गूलर की भांति बीजों से भरे तथा आकार में मूँगफली के छोटे दानों जैसे होते हैं। बीज राई के दाने के आधे आकार में होते हैं। परन्तु इनसे उत्पन्न वृक्ष विशालतम रूप धारण करके सैकड़ों वर्षो तक खड़ा रहता है। पीपल की छाया बरगद से कम होती है, फिर भी इसके पत्ते अधिक सुन्दर, कोमल और चंचल होते हैं। वसंत ऋतु में इस पर धानी रंग की नयी कोंपलें आने लगती है। बाद में, वह हरी और फिर गहरी हरी हो जाती हैं। पीपल के पत्ते जानवरों को चारे के रूप में खिलाये जाते हैं, विशेष रूप से हाथियों के लिए इन्हें उत्तम चारा माना जाता है। पीपल की लकड़ी ईंधन के काम आती है किंतु यह किसी इमारती काम या फर्नीचर के लिए अनुकूल नहीं होती। स्वास्थ्य के लिए पीपल को अति उपयोगी माना गया है। पीलिया, रतौंधी, मलेरिया, खाँसी और दमा तथा सर्दी और सिर दर्द में पीपल की टहनी, लकड़ी, पत्तियों, कोपलों और सीकों का प्रयोग का उल्लेख मिलता है।इसके साथ साथ नीम, बरगद, और फल दार वृक्ष जैसे अमरुद नीबू का रोपड़ गंगा नदी के किनारे सभी गांव मे ग्रामीणों के सहयोग के साथ किया जा रहा है जिसकी अध्यक्ष रमाकांत स्वामी जी * मोमुछु भवन एवंम विशेष सहयोग *वैदिक कृषि केंद्र* का प्राप्त हुआ

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