1 वर्ष से ज्यादा समय से कोविड-19 की आड़ में सभी स्कूल कॉलेज शिक्षण संस्थान बंद हैं। बार-बार खोलने का समय निर्धारित करने के बाद भी शिक्षण संस्थानों को नहीं खोला जा रहा है। चुनाव कराए जा सकते हैं। यातायात संचालित किया जा सकता है। अन्य गतिविधियां चालू हो सकती है। लेकिन स्कूल कॉलेज बंद है। कहा जा रहा है कि संक्रमण फैल सकता है। इसलिए बच्चों को बचाने के लिए स्कूल कॉलेज व शैक्षणिक संस्थाओं को बंद किया हुआ है। यहां तक तो ठीक है। परंतु जैसे अन्य गतिविधियां संचालित की गई हैं। उसी तरह संक्रमण की रोकथाम के कदम उठाते हुए क्या शैक्षिक गतिविधियां शुरू नहीं की जा सकती हैं, की जा सकती हैं लेकिन नहीं की जाएंगी। अब कोविड-19 की सेकंड वेव आने के बाद तो यह और भी असंभव हो गया है। फिलहाल संक्रमण तेज है ।इसलिए अभी तो स्कूल कॉलेज नहीं खोले जाने चाहिए। पूर्व में जब सभी गतिविधियां शुरू हो गई थी । तब भी शैक्षणिक संस्थाएं शुरू नहीं की गई।क्योंकि देश में और मध्यप्रदेश में संविधान को ताक पर रखकर मनुस्मृति को लागू करने की कोशिश ही शिक्षा का सम्पूर्ण लॉक डाउन था। इसकी शुरुआत नए नए रूपों से नए-नए तरीकों से की गयी है। मनुस्मृति की चतुर वर्ण व्यवस्था में शूद्रों को पठन-पाठन का कोई अधिकार नहीं है। अब नए तरीकों से आम छात्रों को पठन पाठन से अलग करने का प्रयास नए-नए तरीकों से जारी है। मोदी सरकार ने यह घोषणा कर दी है, कि अब प्रशासनिक अधिकारी संघ लोक सेवा आयोग यूपीएससी के चयनित छात्रों से नहीं बल्कि कॉर्पोरेट कंपनियों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों में से लिए जाएंगे। इसके लिए कॉरपोरेट्स के प्रति निष्ठा ही उनके चयन का मुख्य आधार होगी। इसकी शुरुआत भी कर दी गई है। उच्च शिक्षण संस्थानों में भारी संघर्षों के बाद वंचित तबकों को प्राप्त आरक्षण को भी समाप्त किया जा रहा है। निजी करण और अन्य तरीकों से उन्हें शिक्षा से मेहरूम रखने का प्रयास किया जा रहा है। गुजरात के बाद मध्य प्रदेश अब हिंदुत्व की नई प्रयोगशाला बनी हुई है। इसी कड़ी में मध्यप्रदेश में सीएम राइज स्कूल खोलने की परियोजना की शुरुआत की जा रही है। यह सब कोरोना काल में भी जारी है। *पहले से ही बदहाल है मध्यप्रदेश की शैक्षणिक स्थिति*।
मध्यप्रदेश में लगभग एक लाख 42 हजार 512 स्कूल हैं । जिनमें शिक्षकों की कमी लगातार बनी हुई है। लगभग 70 हजार शिक्षकों के पद खाली हैं। जो शिक्षक शैक्षणिक कार्य में लगे हैं उन्हें भी अन्य विभागों में सेवा देने के कारण अक्सर सरकारी स्कूलों में अध्यापन कार्य से दूर ही कर दिया जाता हैं। वर्ष 2013 से शिक्षकों की भर्ती ही नहीं हुई है। शैक्षणिक स्थिति की बदहाली के चलते प्रतिवर्ष 3 से लेकर 4 लाख बच्चे शुरुआत में ही स्कूल छोड़ देते हैं। वर्ष 2018-19 मैं प्रदेश के कुल 91.55 लाख बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते थे। जो 2019-20 में घटकर 88 . 75 लाख रह गए। दो लाख से अधिक बच्चे कम हो गए। इसके विपरीत प्राइवेट स्कूलों में 2018-19 में प्रदेश में 65 . 79 लाख बच्चे थे। जो 2019 -20 में बढ़कर 66.7 लाख हो गए। यानी करीब 80 हजार बच्चे प्राइवेट स्कूलों में बढ़ गए। संसाधनों का अभाव तथा सरकारी स्कूलों की कम संख्या के कारण, शिक्षकों की कमी के चलते बच्चे सरकारी स्कूलों से पलायन कर प्राइवेट स्कूलों की तरफ जा रहे हैं । प्रदेश में प्राइवेट स्कूलों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। वर्तमान में 35 हजार के लगभग प्राइवेट स्कूल है। जिनमें महंगी शिक्षा के चलते गरीबों के बच्चे दाखिला भी नहीं ले पा रहे हैं। *लगातार बंद होते सरकारी स्कूल, छात्रों को शिक्षा से वंचित करने की तैयारी*।
प्रदेश में सरकारी स्कूलों को बंद करने का नया अभियान प्रदेश सरकार द्वारा लगातार चलाया जा रहा है। वर्ष 2019 में लगभग 15 हजार स्कूल बंद किए गए। अब 2020- 21 मैं लगभग 13 हजार स्कूल बंद करने की कार्यवाही जारी है । इसका सबसे बुरा असर आदिवासी क्षेत्रों में हुआ है। आदिवासी क्षेत्रों के 10486 स्कूलों में से 6 हजार स्कूलों का विलीनीकरण कर 4 हजार से ज्यादा स्कूल बंद कर दिए गए हैं। इस तरह लगभग कुल मिलाकर प्रदेश में अब तक 19 हजार स्कूल बंद हो गए हैं । ग्रामीण और शहरों में दलित बस्तियों के स्कूल भी इस प्रक्रिया के तहत बंद हो रहे हैं। शिक्षा के केंद्रीकरण और व्यवसायीकरण के लिए 31 जनवरी को राज्य सरकार ने एक खतरनाक कदम उठाते हुए शिक्षा प्राधिकरण का गठन कर दिया है। इसके बाद माध्यमिक शिक्षा मंडल , सर्व शिक्षा अभियान या अन्य आयोग सब निष्प्रभावी कर दिए गए हैं। स्कूलों में छात्रों को लाने के अभियान भी कागजों तक ही सीमित कर रह गए हैं। सरकारी स्कूलों को बंद करने की सरकार की कार्यवाही सबसे ज्यादा चिंताजनक है। अब यह प्रावधान कर दिया गया है कि उन स्कूलों की समीक्षा कर बंद की कार्रवाई की जाए, जहां छात्रों की संख्या 0 से 20 है। ऐसे स्कूलों को समीप के स्कूलों में मर्ज किया जा रहा है और प्राइमरी में 40 से कम छात्र हैं तो सरकार लगातार छात्र संख्या बढ़ाने का प्रयास करने के बजाय , स्कूलों को मर्ज करने के नाम पर एकीकरण कर बंद कर रही है। जब कि बच्चों को स्कूल तक लाना शिक्षा का प्रबंध करना सरकार की बुनियादी जिम्मेदारी में आता है। जिसका पृबन्ध करने के बजाय राज्य शिक्षा केंद्र के आयुक्त ने आदेश जारी कर कहा है कि जिन स्कूलों में छात्र नहीं है वहां शिक्षकों की भी जरूरत नहीं है। ऐसे स्कूलों को समीप के स्कूलों में मर्ज किया जाए और शिक्षकों को दूसरे स्कूलों में शिफ्ट किया जाए। यह सरकार के अपने कर्तव्य से विमुख होने का सबसे घटिया उदाहरण है। भाजपाई संत श्री श्री रविशंकर फरमाते हैं कि सरकारी स्कूलों में नक्सलवादी पैदा होते हैं। इसीलिए सरकारी स्कूलों को बंद कर देना चाहिए और प्राइवेट स्कूलों को ही चालू रखना चाहिए। देश में 25 करोड़ बच्चे स्कूलों में जाते हैं। अगर रविशंकर की मान ली जाए तो। फिर यह बच्चे स्कूल में जा ही नहीं पाएंगे। श्री श्री रवि शंकर ने यहां तक कहा है कि सरकार को कोई सरकारी स्कूल /शैक्षणिक संस्था नहीं चलानी चाहिए। सरकार इस आदेश का अक्षरष: पालन करने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई देती है।
इसी रास्ते पर प्रदेश सरकार भी चल रही है।
प्रदेश में जानबूझकर शैक्षणिक संस्थानों की स्थितियों को बिगाड़ने के लिए कोविड-19 की आड़ में लगातार सुविधाओं में कटौती व बंदी की जा रही है। गणवेश, साइकिल वितरण ,मध्यान भोजन , पुस्तक वितरण की स्थिति बिगाड़ दी गई है। मध्यान भोजन को स्व: सहायता समूह से हटाकर निजी एजेंसियों को दे दिया गया है। इसी तरह गणवेश भी घटिया सप्लाई किए जा रहे हैं। साइकिलों का तो अता पता ही नहीं है। किताबें भी बहुत कम संख्या में आधा सत्र निकल जाने के बाद वितरित की जाती है। प्रकाशन सामग्री भी अत्यंत घटिया है। अब तो वह भी बंद है। शिक्षा के क्षेत्र में कुछ भी नहीं बचने देने के लिए प्रतिबद्ध सरकार ने
शिक्षकों की भी स्थिति बंधुआ मजदूरों जैसी कर दी है। पेंशन नहीं है, प्रमोशन नहीं है। सीनियरिटी समाप्त कर 2018 से सभी को एक ही ग्रेड पर कर दिया गया है। यदि थोड़ी बहुत वेतन बढ़ोतरी होगी भी वह भी नगदी में नहीं मिलेगी खातों में जमा कराई जाएगी। कुल मिलाकर पूरी तरह से शैक्षणिक व्यवस्था को ध्वस्त किया जा रहा है। सरकार शिक्षा के निजीकरण तक ही सीमित नहीं है। वह लगातार शिक्षा का संप्रदायिकीकरण व भगवाकरण करने पर भी आमादा है। इस दिशा में हर तरह के कुत्सित प्रयास किए जा रहे हैं।
बर्बाद होती शैक्षणिक व्यवस्था में फीलगुड कराने के लिए सीएम राइज स्कूल का सगूफा प्रदेश सरकार द्वारा छोड़ा गया है । यह सीएम राइस स्कूल क्या है इसके बारे में नीचे बताया गया है। *छात्रों को शिक्षा से वंचित कर, चंद हाथों में सीमित करने की परियोजना है। सीएम राइज स्कूल*
मध्यप्रदेश में 9985 सीएम राइज स्कूल खोले जाएंगे । इन स्कूलों के बारे में यह बताया जा रहा है कि इनमें नर्सरी से लेकर हायर सेकेंडरी तक की पढ़ाई हिंदी व अंग्रेजी माध्यम से एक ही कैंपस में कराई जाएगी। इसके लिए वर्ल्ड क्लास स्तर की सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाले सभी सरकारी स्कूलों को मर्ज कर (बंद कर) एक सीएम राइज स्कूल बनाया जाएगा। जिसमें बसों से छात्रों को लाने की सुविधा भी होगी। इनमें प्रशिक्षित शिक्षकों की पदस्थापना की जाएगी। एक स्कूल पर ₹20 करोड़ खर्च करने का प्रावधान प्रदेश सरकार द्वारा रखा है। सीएम राइज स्कूल परियोजना 2023 तक पूरा करने का लक्ष्य है । कार्यवाही कोरोना काल में भी जारी है। इसमें पहले चरण में 3 से 5 किलोमीटर के दायरे के स्कूल बंद किए जाएंगे। दूसरे चरण में 5 से 8 किलोमीटर के दायरे के स्कूल बंद किए जाएंगे। फिर 10 किलोमीटर के दायरे के सरकारी स्कूल बंद किए जाएंगे। 3 हजार संकुल केंद्रों को 5 - 5 हजार स्कूलों की सूची भेज कर 3 - 3 स्कूलों का चयन करने को कहा गया है। सन 2023 में सभी सी एम राइज स्कूल शुरू होने हें यह बताया जा रहा है । प्रत्येक जन शिक्षा केंद्र पर 5 - 5 स्कूल खुलना है।
ऐसे में जब प्रदेश में सभी स्कूल बंद है। विलीनीकरण व एकी करण के नाम पर 19 हजार स्कूल बंद कर दिए गए हैं। तब फीलगुड कराने के लिए सीएम राइस स्कूल का राग अलाप आ गया है। यह सरकार अपनी नाकामी छुपाने के लिए जुमले और वायदों की सूची में एक नया कार्य जोड़ने की कोशिश कर रही है। मध्य प्रदेश जैसे पिछड़े राज्य में जिसमें 20% आदिवासी 15% दलित आबादी रहती है। आज भी बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं। स्कूलों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है। तब जरूरत तो शिक्षा के लोक व्यापीकरण की है। लेकिन प्रदेश की भाजपा सरकार जो फासीवादी, संप्रदायिक, कॉरपोरेट परस्त एजेंडे पर चल रही है। वह हर हथकंडे को अपनाकर छात्रों को शिक्षा से वंचित करने के एजेंडे को लागू करने के लिए प्रयासरत है। यही अघोषित रूप से मनुस्मृति को मध्य प्रदेश में लागू करने की कोशिश है। महत्वपूर्ण प्रश्न यह पैदा होता है कि जिन स्कूलों को बंद किया जाएगा उन स्कूलों की अरबों रुपयों की खाली इमारतों का क्या उपयोग होगा। जैसा हम सब अनुमान लगा सकते हैं कि यह इमारते आर एस एस से जुड़ी शिक्षण संस्थाओं को लीज पर देकर उनमें गुरुकुल चलाने या इस तरह के संस्थान चलाने या विकसित करने का कार्य किया जाएगा। इससे यह स्पष्ट है कि सीएम राइज स्कूल छात्रों को खासतौर से गरीब छात्रों को शिक्षा से वंचित कर ने की परियोजना के अलावा कुछ नहीं है। यह कार्य कोविड-19 की आड़ में निर्बाध गति से संपन्न किया जा रहा है। स्पष्ट है कि यह छात्रों को शिक्षा से वंचित करने की परियोजना के अलावा कुछ नहीं है।
*शिक्षा के क्षेत्र में केरल की वामपंथी सरकार द्वारा लागू किया गया मॉडल ही विकल्प है* शिक्षा विकास सूचकांक (EDI)-/स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स के अनुसार देश भर में शिक्षा के क्षेत्र में 20 बड़े राज्यों में केरल टॉप पर है। मध्य प्रदेश 15 वें स्थान पर है। केरल देश का पहला राज्य है जो 100% साक्षर हो चुका है । साक्षरता का कार्यक्रम "अतुल्यम" के जरिए चलाया गया। जिसमें जन भागीदारी सुनिश्चित की गई । इस अभियान के जरिए देशभर में केरल ने कीर्तिमान स्थापित कर 100% साक्षरता का लक्ष्य हासिल कर लिया। यह बड़े गर्व की बात है जबकि देशभर में साक्षरता का अनुपात 50 और 60 % के बीच में ही है। केरल में लगभग 1000 महाविद्यालय हैं जिनमें से 20 कॉलेज देश के सौ टॉप कॉलेजों में से हैं। प्रदेश में कुल 16 विश्वविद्यालय हैं। जिनमें से 13 राज्य सरकार के अधीन है। 2 डीम्ड विश्वविद्यालय है। एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है। महात्मा गांधी विश्वविद्यालय देश की टॉप 30 यूनिवर्सिटी में से एक है। (यह 2020 की रिपोर्ट है)। केरल देश का छोटा प्रांत है। जिसकी आबादी लगभग तीन करोड़ 34 लाख है। राज्य में वर्तमान में लगभग 160 27 स्कूल है। स्कूल मैं दाखिले के बाद कक्षा 1 से 10 के बीच स्कूल छोड़ने वाले छात्रों की संख्या भी देश में केरल में सबसे कम है। कक्षा 1 से 10 तक पहुंचते में लगभग 27% छात्र ( ड्रॉपआउट )कक्षा छोड़ देते हैं । अनुसूचित जाति मैं यह अनुपात 41% है तथा अनुसूचित जनजाति में यह अनुपात थोड़ा ज्यादा है। जबकि देश में स्थिति इसके उलट है कॉलेज एजुकेशन तक पहुंचने में लगभग 90% छात्र पढ़ाई छोड़ देते हैं। यह स्थिति अत्यंत भयावह वह देश की शैक्षणिक व्यवस्था की बदहाली को प्रदर्शित करती है। एक नजर जनगणना 2011 के साक्षरता दर के आंकड़ों पर डालने से स्थिति और भी स्पष्ट हो जाती है।
साक्षरता दर 2011*
ग्रामीण शहरी
92.98% 95.10%
ग्रामीण शहरी
पुरुष 95.36 96.95%
महिला90.81 93.43
स्कूल शिक्षा की स्थिति प्रदेश में बहुत ही अच्छी है । विगत 50 वर्षों में शैक्षणिक व्यवस्थाओं में बेहतर उन्नति हुई है। इसमें बाम लोकतांत्रिक मोर्चे की सरकार का सराहनीय योगदान रहा है। जिसकी वजह से केरल देश में ही नहीं बल्कि दुनिया में ख्याति प्राप्त है। इसमें शिक्षा पर खर्च होने वाले बजट से लेकर सरकार की शिक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का भी अहम रोल रहा है। जब केंद्र सरकार शिक्षा का बजट बढ़ाने के बजाय उसमें निरंतर कटौती कर रही है। शिक्षा पर केंद्रीय बजट 2014- 15 में 4.14 % से घटकर 2019 -20 में 3.4 % रह गया है। यह स्थिति तब है जब सरकार ने शिक्षा के नाम पर प्रभार भी लगाया हुआ है। केंद्र सरकार लगातार बजट में कटौती कर रही है जिससे उसके मंसूबे स्पष्ट होते हैं। इस स्थिति में भी
2018 में केरल की एलडीएफ सरकार ने राज्य में गठित मिशनो के सहयोग से प्रदेश के स्कूलों का कायाकल्प कर दिया है।वर्तमान में पब्लिक एजुकेशन सुधार मिशन के लागू होने के बाद लगभग सभी स्कूलों में क्लास रूम हाईटेक हो गए हैं। एक तरह से राज्य की शिक्षा व्यवस्था का कायाकल्प हो गया है। सार्वजनिक शिक्षा में केरल राज्य डिजिटल राज्य घोषित हो गया है। यहां पर शिक्षा को उत्सव के रूप में लेते हैं। स्कूलों में तीन भाषा फार्मूले के तहत शिक्षा सुगम तरीके से दी जाती है। शैक्षणिक संस्थानों में जनवादी व वैज्ञानिक शिक्षा के प्रसार का लगातार प्रयास किया जाता है। इसमें लाइब्रेरी आंदोलन का भी बड़ा योगदान है। शैक्षणिक संस्थानों में नियमित छात्र संघ चुनाव होते हैं। जिसमें जनवादी माहौल सुनिश्चित किया जाता है। निर्वाचित छात्र संघ छात्र हितों के लिए कार्यरत हैं । यहां तक कि शिक्षकों के भी संगठन व यूनियने अपने अधिकारों के लिए सजग व प्रयासरत रहती है। शिक्षकों के संगठन भी नियमित रूप से सक्रिय हैं। खेलकूद व सांस्कृतिक गतिविधियों को भी लगातार प्रोत्साहित किया जाता है। युवा महोत्सव जैसी गतिविधियां नियमित रूप से आयोजित होती है। एन सी ईआर टी की टीमों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षाविदों ,शिक्षा विशेषज्ञ तथा राज्य स्तर व राष्ट्रीय स्तर के कई शैक्षणिक गतिविधियों के जानकारों ने शैक्षणिक संस्थाओं का दौरा कर केरल की शिक्षा व्यवस्था को अभिनव बताया है। यह शैक्षणिक व्यवस्था सरकारी प्रयासों के साथ- साथ जनभागीदारी, जन प्रयासों तथा सामाजिक सरोकारों के प्रति समर्पण, सामाजिक चेतना के चलते ही निर्मित हुई है। इसमें केरल की वामपंथी सरकार तथा वाम जनवादी संगठनों व आंदोलनों का अतुलनीय योगदान है। यही सच्चा विकल्प है । आज देश को इसी विकल्प की जरूरत है।
अशोक तिवारी राज्य सचिव मण्डल
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