शहर में फिर लौटा लाउडस्पीकर की तेज ध्वनि प्रशासन और कोर्ट के आदेश का हो रहा खुला उल्लघंन।
राम नगरी अयोध्या में एक बार फिर लौटा लाउडस्पीकरों की तेज ध्वनि मंदिर और मस्जिदों के साथ धार्मिक समारोहों, मैरिज हाल व शादी समारोह में देखें जा सकतें हैं । ध्वनि प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट का सबसे अहम फैसला 18 जुलाई, 2005 का है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार है और यह अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। लाउडस्पीकर या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी जीवन के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती। किसी को इतना शोर करने का अधिकार नहीं है जो उसके घर से बाहर जाकर पड़ोसियों और अन्य लोगों के लिए परेशानी पैदा करे। कोर्ट ने कहा था कि शोर करने वाले अक्सर अनुच्छेद 19(1)ए में मिली अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की शरण लेते हैं। लेकिन कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर चालू कर इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता। अगर किसी के पास बोलने का अधिकार है तो दूसरे के पास सुनने या सुनने से इन्कार करने का अधिकार है। लाउडस्पीकर से जबरदस्ती शोर सुनने को बाध्य करना दूसरों के शांति और आराम से प्रदूषणमुक्त जीवन जीने के अनुच्छेद-21 में मिले मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। अनुच्छेद 19(1)ए में मिला अधिकार अन्य मौलिक अधिकारों को हतोत्साहित करने के लिए नहीं है।फैसले में कोर्ट ने आदेश दिया था कि सार्वजनिक स्थल पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज उस क्षेत्र के लिए तय शोर के मानकों से 10 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी या फिर 75 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी, इनमें से जो भी कम होगा वही लागू माना जाएगा। जहां भी तय मानकों का उल्लंघन हो, वहां लाउडस्पीकर व उपकरण जब्त करने के बारे में राज्य प्रविधान करे। इस लाउडस्पीकर के तेज ध्वनि पर बजने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धर्मस्थलों, सार्वजनिक जगहों, जुलूसों और जलसों आदि में बिना अनुमति के लाउडस्पीकर बजाने पर रोक का यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद लिया गया है. 20 दिसंबर 2017 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से सवाल किया था कि किसके आदेश पर लाउडस्पीकर बज रहे हैं? हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंदिर और मस्जिद में धार्मिक स्थलो फैसले द्वारा दिये गये आदेश के बाद भी प्रशासन इस ओर पूर्व में लाउडस्पीकर पर तेज ध्वनि पर रोक लगाने के लिए मंदिर, मस्जिदों के छत पर लगे लाउडस्पीकरो को उतारने, हटाने व उनकी ध्वनि को कम करने का आदेश प्रदेश सरकार ने सभी जिलों के जिलाधिकारियों को दिया था और उस पर कार्रवाई करते हुए सभी जिलों में मंदिर मस्जिदों के छत पर लगे एक से अधिक लाउडस्पीकरों को हटाने उतारने का काम किया गया था, परंतु इस घटना को एक बार फिर शहर के विभिन्न क्षेत्रों के मंदिर मस्जिदों के साथ धार्मिक समारोहों और मैरिज हाल के अंदर और शादी समारोहों में तेज ध्वनि मे बज रहे लाउडस्पीकर और बैंड बाजों की तेज ध्वनि ने प्रदेश शासन के आदेश के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम के आदेश का खुला उल्लघंन कर रहे हैं और प्रशासन मौन है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लाउडस्पीकर से तेज़ ध्वनि में अपनी बात कहना उस व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है परंतु दूसरा व्यक्ति जो उस बात को न सुनना चाहता है वह उसकी स्वतंत्रत अभिव्यक्ति है यानी लाउडस्पीकर पर तेज ध्वनि मे न सुनने वाले लोगों के उनके मौलिक अधिकार का हनन किया जा रहा है । उत्तर प्रदेश सरकार ने धार्मिक और सार्वजनिक स्थलों पर अवैध तरीके से लाउडस्पीकर बजाए जाने पर रोक लगा दी है. सरकार ने इसके लिए सभी को हिदायत दी है कि बगैर अनुमति के बज रहे सारे अवैध लाउडस्पीकर 20 जनवरी तक हटा लिए जाएं.
धर्मस्थलों, सार्वजनिक जगहों, जुलूसों और जलसों आदि में बिना अनुमति के लाउडस्पीकर बजाने पर रोक का यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद लिया गया है. 20 दिसंबर 2017 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से सवाल किया था कि किसके आदेश पर लाउडस्पीकर बज रहे हैं? हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंदिर और मस्जिद में लाउडस्पीकर बजाने को लेकर दायर की गई जनहित याचिका पर उत्तर प्रदेश के गृह सचिव, मुख्य सचिव और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के प्रमुख को तलब किया था.
तब कोर्ट ने कहा था कि किसी भी खास मौके पर सार्वजनिक रूप से लाउडस्पीकर बजाने से पहले प्रशासन से इजाजत लेनी होगी और तय शर्तों के साथ ही लाउडस्पीकर बजाने की अनुमति मिलेगी. ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 के मुताबिक रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक लाउडस्पीकर बजाने की इजाजत नहीं है
फिलहाल उत्तर प्रदेश सरकार ने धार्मिक और सार्वजनिक स्थलों पर बजने वाले लाउडस्पीकरों पर रोक लगा दिया था जो एक बार फिर अब अयोध्या शहर के विभिन्न धार्मिक स्थलों मंदिर मस्जिदों और सार्वजनिक स्थलों पर तेज ध्वनि में लाउडस्पीकर बज रहे हैं और शासन प्रशासन के द्वारा कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। जबकि ध्वनि प्रदूषण (अधिनियम और नियंत्रण) कानून, 2000 जो पर्यावरण (संरक्षण) कानून, 1986 के तहत आता है की 5वीं धारा लाउडस्पीकर्स और सार्वजनिक स्थलों पर बजने वाले यंत्रों पर मनमाने अंदाज में बजने पर अंकुश लगाता है.. लाउडस्पीकर या सार्वजनिक स्थलों पर यंत्र बजाने के लिए प्रशासन से लिखित में अनुमति लेनी होती है लाउडस्पीकर या सार्वजनिक स्थलों पर यंत्र रात में नहीं बजाए जा सकेंगे. इसे रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक बजाने पर रोक है ।
नियम की उपधारा (2) के अनुसार, राज्य सरकार इस संबंध में कुछ विशेष परिस्थितियों में रियायतें दे सकती है. वह किसी संगठन या धार्मिक कार्यक्रम के दौरान लाउडस्पीकर या सार्वजनिक स्थलों पर चलने वाले यंत्रों को बजाने की अनुमति रात 10 बजे से बढ़ाकर 12 बजे तक दे सकती है. हालांकि किसी भी परिस्थिति में एक साल में 15 दिन से ज्यादा ऐसी अनुमति नहीं दी जा सकती । ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण (संरक्षण) 1986 कानून की धारा 15 के तहत इसे दंडनीय अपराध माना गया है. नियम का उल्लंघन करने पर राज्य सरकार ध्वनि यंत्र को जब्त कर सकती है साथ ही 5 साल की जेल या एक लाख का जुर्माना या फिर दोनों (जेल और जु्र्माना) सजा दी जा सकती है. साथ ही हर दिन के उल्लंघन करने पर पांच हजार रुपये प्रतिदिन की सजा का प्रावधान अलग से है.।
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