श्री माँ सारदा देवी की 173वीं जयंती पर आयोजित 4 दिवसीय कार्यक्रम का रामकृष्ण मठ, लखनऊ में हुआ समापन।



श्री मां सारदा देवी मां सरस्वती के रूप में बगला की अवतार हैं - स्वामी मुक्तिनाथानंद


रामकृष्ण मठ, निराला नगर, लखनऊ में पूज्य माँ श्री सारदा देवी की 4 दिवसीय 173वीं जयंती का समापन दिवस मनाया गया। उपरोक्त सभी कार्यक्रम हमारे यूट्यूब चैनेल : ‘रामकृष्ण मठ लखनऊ’ के माध्यम से सीधा प्रसारित किया गया।


दिनांक 14 दिसम्बर, 2025 को श्री रामकृष्ण मन्दिर के वृहद परिसर में कार्यक्रम की शुरूआत सुबह 5ः00 बजे शंखनाद व मगंल आरती से हुई। भक्तगणों की सतत् भागीदारी के साथ सूर्योदय से सूर्यास्त तक निरन्तर जप-यज्ञ, (बारी-बारी से इच्छुक भक्तगणों द्वारा भगवान का निरन्तर नाम जप) परोक्ष रूप से इन्टरनेट के माध्यम से सम्मलित होकर हुआ। उसके पश्चात वैदिक मंत्रोच्चार और देवी की स्तुति हुई। तत्पश्चात प्रातः 7ः15 बजे स्वामी मुक्तिनाथानन्दजी महाराज द्वारा (ऑनलाइन) सत् प्रसंग हुआ।


प्रातः 11:30 बजे से रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथनन्दजी महाराज द्वारा ‘‘श्री रामकृष्ण की दृष्टि में श्री माँ सारदा देवी’’ विषय पर एक प्रवचन दिया। उन्होंने कहा कि, श्री रामकृष्ण के लिए, श्री माँ शारदा देवी सिर्फ़ उनकी पत्नी नहीं थीं, बल्कि सार्वभौमिक माँ (शक्ति) का एक दिव्य रूप थीं, एक जीवित देवी, और शुद्ध दिव्य मातृत्व का प्रतीक थीं, जिनकी उन्होंने षोडशी पूजा के दौरान देवी काली के रूप में विधि-विधान से पूजा की, उन्हें दुनिया के लिए अंतिम आध्यात्मिक शक्ति और सबसे शुद्ध स्त्री आदर्श, अनंत प्रेम, शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा का स्रोत मानते हुए। उन्होंने उन्हें अपनी संगिनी, आध्यात्मिक मार्गदर्शक, और अपने आध्यात्मिक अनुभवों को साकार करने के लिए आवश्यक दिव्य ऊर्जा के रूप में देखा, एक ऐसी शक्ति जो उनमें कोमल, अटूट करुणा और अनंत धैर्य के रूप में प्रकट हुई, जिसने उन्हें सभी प्राणियों, अच्छे और बुरे दोनों की माँ बनाया।

श्री रामकृष्ण द्वारा उनके बारे में धारणा के मुख्य पहलूः

* दिव्य माँ (शक्ति)ः उन्होंने उन्हें सर्वोच्च देवी, मानव रूप में दिव्य माँ, काली और सरस्वती का अवतार, सभी आध्यात्मिक ज्ञान और शक्ति का स्रोत माना।

* आध्यात्मिक संगिनीः वह उनकी आध्यात्मिक साथी थीं, जो उनकी तीव्र आध्यात्मिक अवस्थाओं को स्वीकार करती थीं और उन्हें ज़मीन से जोड़े रखती थीं, जिससे उन्हें दुनिया को वास्तविक रूप में अनुभव करने की अनुमति मिली।

* आदर्श स्त्रीः उन्होंने उन्हें एक आदर्श स्त्री के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें पवित्रता, मातृत्व और आध्यात्मिक महारत का संगम था, जो सभी के लिए एक आदर्श थीं।

* सार्वभौमिक मातृत्वः उन्होंने उनके अंदर छिपे मातृत्व को जगाया, जिससे वह सभी को अपना बच्चा मान सकें, बिना शर्त प्यार, सुरक्षा और करुणा प्रदान कर सकें।

* छिपी हुई शक्तिः उन्होंने समझा कि उनकी अपार आध्यात्मिक शक्ति को सुरक्षित रखा गया था, जो उनके जैसी परमानंद की अवस्थाओं के माध्यम से नहीं, बल्कि मौन सहनशीलता, पवित्रता और गहरी आंतरिक दिव्यता के माध्यम से व्यक्त होती थी, जिससे उनकी महानता और भी गहरी हो गई।


सायं 4ः30 बजे से एक युवा कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमे भारी संख्या में युवाओं व भक्तगणों ने भाग लिया उस दौरान रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष, स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज द्वारा ‘स्वामी विवेकानन्द की दृष्टि में श्री माँ सारदा देवी’ विषय पर प्रचवन देते हुये कहा कि. स्वामी विवेकानन्द ने बेलूड़ मठ में कहा था - ‘माँ सरस्वती के रूप में बगला  की अवतार हैं। बाहर से वे शान्ति से परिपूर्ण हैं, परन्तु भीतर से वे आसुरी शक्ति की विनाशक हैं।’ माँ स्वयं ही सरस्वती हैं। वे ही कृपा करके ज्ञान देती हैं। ज्ञान अर्थात् भगवान को जानना - ज्ञान होने पर ही ठीक-ठीक सच्ची भक्ति होनी सम्भव है। ज्ञान के बिना भक्ति नहीं होती। शुद्ध ज्ञान और शुद्ध भक्ति दोनों एक हैं। माँ की कृपा से ही वह होना सम्भव है। माँ ही ज्ञान की स्वामिनी हैं। वे यदि कृपा करके ब्रह्मविद्या का द्वार खोल दें, तभी जीव ब्रह्मविद्या का अधिकारी हो सकता है, अन्यथा नहीं। दुर्गा-सप्तशती में कहा गया है -सैषा प्रसन्ना वरदा नृणां भवति मुक्तये - ये महामाया ही प्रसन्न होकर मनुष्यों को मुक्ति का वर प्रदान करती हैं।’

माँ ही साक्षात् सरस्वती हैं। उन्हीं की कृपा से हमारे मठ में उनकी नित्य पूजा होती है। वे ही कृपा करके सबका अज्ञान दूर करती हैं और ज्ञान-भक्ति प्रदान करती हैं।


तदोपरान्त निर्देशित ध्यान एवं भजन रामकृष्ण मठ, लखनऊ के अध्यक्ष, स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज के नेतृत्व में सम्पन्न हुआ।


संध्या आरती के उपरान्त सायं 7ः00 बजे से एक सास्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन मठ सभागार में किया गया, जिसमें जालंधर के जाने माने सितार वादक श्री सुमित पदम सिंह ने राग - श्याम कल्याण, आलाप जोड, बिलंबित तीन ताल, घ्रुत तीन ताल और झाला पर अपनी मनमोहक प्रस्तुति दी उस दौरान तबले पर लखनऊ के जाने माने तबला वादक उस्ताद इलमास हुसैन खान ने संगत दिया। जिससे मंदिर सभागार में बैठे समस्त भक्तगण एवं श्रोतागण मंत्रमुग्ध हो गये।

 

सितार वादक सुमित पदम सिंह का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जहाँ संगीत एक पवित्र विरासत की तरह बहता है, सुमित को संगीत के प्रति अपना प्यार और इस क्षेत्र में विशेषज्ञता अपने तीन पीढ़ियों पुरानी पारिवारिक परंपरा से विरासत में मिली है। उनके पिता श्री जसबीर सिंह पदम उनके पहले गुरु बने, जो खुद एक कुशल सितार और तबला वादक हैं। उनके दादा श्री सोहन सिंह पदम, ऑल इंडिया रेडियो के सितार के ग्रेडेड कलाकार थे, जो एक अनुकरणीय संगीतकार और तार वाले वाद्ययंत्रों के मास्टर कारीगर भी थे, खासकर सितार, तानपुरा और दिलरुबा जैसे वाद्ययंत्र बनाने में अपनी दक्षता के लिए जाने जाते थे। इस समृद्ध विरासत को आगे बढ़ाते हुए और अपने आदर्श वाक्य “गुरु कृपा ही केवलम“ पर विश्वास करते हुए, सुमित अपने गुरु पंडित हरविंदर शर्मा से गुरु-शिष्य परंपरा की परंपरा के अनुसार सितार सीख रहे हैं, जो ए.आई.आर./टी.वी. के ’टॉप ग्रेड’ कलाकार और एक प्रशंसित सितार वादक हैं, जो अपने गुरु उस्ताद विलायत खान साहब की पीढ़ियों पुरानी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। सुमित ए.आई.आर./टी.वी. के ‘‘ए’’ ग्रेडेड सितार कलाकार हैं और लंबे समय से भारतीय शास्त्रीय संगीत का जादू बिखेर रहे हैं और देश और विदेश के कुछ सबसे महत्वपूर्ण संगीत समारोहों में अपने प्रदर्शन के कारण काफी प्रसिद्धि हासिल की है। इसके अलावा, उनके नाम कई पुरस्कार और उपलब्धियाँ भी हैं, जो उनकी सफलता और बढ़ते सम्मान का प्रमाण हैं। सुमित को हैदराबाद हाउस, नई दिल्ली में भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और पैराग्वे के महामहिम राष्ट्रपति श्री सैंटियागो पेना की सम्मानित उपस्थिति में आयोजित एक विशेष संगीत समारोह में प्रदर्शन करने का अविश्वसनीय सौभाग्य मिला। वर्तमान में सुमित अपीजय कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स, जालंधर के विजुअल एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स संकाय, इंस्ट्रूमेंटल म्यूजिक विभाग में सितार के सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।


वहीं लखनऊ के जाने माने तबला वादक उस्ताद इलमास हुसैन खान तबला के लखनऊ घराना के मौजूदा खलीफ़ा (लीडर) हैं। उन्हें यह उपाधि उनके पिता, स्वर्गीय मशहूर उस्ताद अफ़ाक हुसैन खान से विरासत में मिली है। इलमास को 7 साल की छोटी उम्र में लखनऊ घराना में शामिल होने का सौभाग्य मिला, जहाँ एक तबला वादक के तौर पर उनकी प्रतिभा निखरी। उस्ताद इलमास हुसैन खान ने 7 साल की उम्र में अपने पिता, उस्ताद अफाक हुसैन खान और दादा, उस्ताद वाजिद हुसैन खान से शिक्षा ली। उन्होंने प्रयाग संगीत समिति से संगीत प्रभाकर और संगीत प्रवीण किया। उन्हें 1982 में ताल-मणि और 1986 में राष्ट्रीय युवा सम्मान मिला और वे ऑल इंडिया रेडियो के टॉप-ग्रेड कलाकार हैं।

वह एक बहुमुखी संगीतकार हैं जो सोलो परफॉर्मेंस देने और वोकल, वाद्य संगीत और कथक नृत्य के लिए संगत देने में समान रूप से माहिर हैं। इलमास खान ने कई जगहों पर अपनी प्रस्तुति दी है।


अन्त में सभी कलाकारों को मठ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द जी महाराज द्वारा अंगवस्त्रम्, टेबल व वॉल कैलेण्डर, प्रसादम् और अध्यात्मिक पुस्तकें भेट कर उनका अभिनंदन किया।


तत्पश्चात उपस्थित सभी भक्तगणों व युवाओं के बीच प्रसाद वितरण के साथ चार दिवसीय कार्यक्रम का समापन हुआ।


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