आज राजेंद्र नाथ लहड़ी बलिदान दिवस पर यज्ञ के बाद मुख्य यजमान जनपद न्यायाधीश तथा विशिष्ट यजमान देवीपाटन मंडल कमिश्नर, जनपद गोंडा के जिलाधिकारी,अपर जिलाधिकारी, सी जे एम, पुलिस अधीक्षक, अपर पुलिस अधीक्षक व कारागार अधीक्षक ने अपना अपना विचार व्यक्त किया तथा आर्य वीर दल उत्तर प्रदेश के प्रचार मंत्री अशोक आर्य ने लहड़ी जी व क्रांतिवीरों के बलिदान पर वीर रस की कविता प्रस्तुत किया! पं. विमल कुमार आर्य जी ने अपनी उद्बोधन में बताया कि राजेंद्र नाथ लहड़ी जी से फांसी पर चढ़ने से पूर्व दिवस पर जब उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उन्होंने अंतिम इच्छा व्यक्त किया कि --
" मेरी हथकड़ी और बेड़िया खोल दी जाए मैं भागूंगा नहीं मैं स्नान करके अपने गुरु महर्षि दयानंद की तरह ईश्वर स्तुति प्रार्थना उपासना वेद मंत्रो का पाठ करने के बाद संध्या और यज्ञ करूंगा तथा सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने के बाद फांसी पर चढूंगा "
लहड़ी जी ने संध्या हवन करने के बाद हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया! उन्हें हंसता हुआ देख कर जेलर ने उनसे पूछा कि आप मरने जा रहे हो फिर भी इतना प्रसन्न क्यों हो❓️
लहड़ी जी ने उत्तर दिया कि --
"मैं फांसी पर चढ़कर मरने नहीं बल्कि स्वतंत्र भारत में जन्म लेने जा रहा हूं"
प्रभात बेला में उन्हें फांसी दे दी गई! उनके शव को लेने के लिए बाहर भारी भीड़ खड़ी थी! आर्य समाज के पुरोधा महाशय छोटेलाल आर्य लहड़ी जी के मृतक शरीर को अपनी पीठ पर लाद कर बाहर लाए और जेल के थोड़े दूरी पर ही स्थित नदी के तट पर वैदिक रीति से उनका अंतिम संस्कार किया गया! अंतिम संस्कार होने के बाद भी अंग्रेजों ने उनके साथ अत्याचार किया और उनके अंतिम संस्कार स्थल को "बूचड़ घाट" का नाम दिया लेकिन देश की आजादी के बाद आर्य समाज ने उस घाट का नाम लहड़ी घाट रखवाया!
👌🏻 इस प्रसंग को सुनकर बलरामपुर के आर्य वीर बहुत भावुक हो गए और मेरे सामने प्रतिज्ञा किये कि वे सब कल से प्रतिदिन सुबह शाम संध्या करेंगे तथा सप्ताह में एक दिन यज्ञ भी करेंगे!
हिंदी संवाद न्यूज़ से
वी. संघर्ष की रिपोर्ट
बलरामपुर।
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