अपनी खोई शक्ति को पहचाने कोरोना संक्रमित
याद रखें 98 फीसद से अधिक मरीज घर पर दवाईयों से हो रहे हैं स्वस्थ्य
हनुमान जी महाराज को भी समुद्र पार करने में जामवंत ने याद दिलाई थी उनकी शक्ति
कोरोना के विरूद्ध कैम्पन
अंबेडकर नगर वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से जो भी व्यक्ति संक्रमित हो रहा है वह बुरी तरह से डर रहा है। वहीं जो व्यक्ति अभी संक्रमित नहीं हुए हैं वह भी दहशत में जीवन जी रहे हैं। जबकि देखा जाए तो भारत देश की जनसंख्या के अनुपात में दो फीसद भी मौतें कोरोना से नहीं हुई है। हमें कोरोना से डरने की नहीं है, बल्कि हमें कोरोना के विरूद्ध लडऩे की आवश्यकता है। तो आखिर हम ऐसा क्या करें जिससे की हम कोरोना के विरूद्ध लडऩे के लिए तैयार हो जाए? तो आइए इसके लिए कुछ चुनिंदा बातों पर फोकस करते हैं। मसलन हमारे शरीर में वह सब विद्मान है जो कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई लडऩे में सक्षम है। बस आवश्यकता है तो हमें हमारी शक्ति को पहचानने की। यकीन मानिए यदि कोरोना संक्रमित मरीजों ने अपने शरीर की शक्ति को पहचान ली वह शीघ्र स्वस्थ्य होना प्रारंभ कर देंगे। अब यहां प्रश्र यह उठता है कि आखिर वह शक्ति कौन सी है? जिसे कोरोना संक्रमित नहीं पहचान पा रहे हैं तो चलिए इस पर चर्चा करते हैं। आपको याद होगा कि जब माता सीता जी की खोज करने के लिए सभी वानर समुद्र के किनारे आकर रूक गए थे उस समय सभी ने हनुमान जी को उनकी खोई शक्ति याद दिलाई थी, और उन्होंने एक झटके में समुद्र पार कर लिया था। हनुमान जी जैसी ना सही लेकिन हमारे शरीर के भीतर भी सकारात्मक सोच, उत्साह का संचार, उम्मीद, आशा रूपी शक्ति विद्यमान है जो कि हमें कोरोना से जीतने में मदद करेगी। तो फिर हम क्यों ना हमारे भीतर ही इस शक्ति को पहचानकर इसे उभारे? और कोरोना के खिलाफ डर कर नहीं डट कर जंग लड़ें और शीघ्र स्वस्थ्य भी हो। मनुष्य निरंतर मिलने वाली असफलताओं से यह मान बैठता है कि अब वह पहले जैसा कार्य नहीं कर सकता। जैसे ही यह सोच व्यक्ति के मन और मस्तिष्क में आती है व्यक्ति की शक्ति क्षीण हो जाती है। हमें इस शक्ति को बचाकर रखना है ताकि हम कोरोना से जंग जीत सकें। भीतर की शक्ति के बारे में इस कहानी से और अच्छे से सीखा जा सकता है। एक राजा था उसके पास वैसे तो कई हाथी थे लेकिन एक हाथी राजा का सबसे अधिक प्रिय था। वह बहुत शक्तिशाली था, बहुत आज्ञाकारी, समझदार व युद्ध-कौशल में निपुण था। बड़े-बड़े युद्धों में वह दुश्मनों की सेना को ताश के पत्तों की तरह बिखेरकर रख देता था और राजा विजयी हो जाता था। समय के साथ परिस्थितियाँ भी बदली और वह हाथी बूढ़ा हो गया तो राजा ने उसे युद्ध में ले जाना बंद कर दिया। एक दिन वह पानी पीने के लिए सरोवर में गया और वहीं दलदल में फंस गया। उसकी चिंघाडऩे की आवाज से लोगों को यह पता चल गया कि वह संकट में है। राजा को भी यह समाचार सुनाया गया तो राजा ने तुरंत सरोवर के पास आकर देखा कि बड़ा मजमा लगा हुआ था। राजा समेत सभी लोगों ने हाथी को निकालने के सभी प्रकार के प्रत्यन किए लेकिन विफल रहे। उसी समय गौतम बुद्ध सरोवर के कुछ दूरी से गुजर रहे थे। तभी राजा और सारा मंत्रीमंडल गौतम बुद्ध के पास गये और अनुरोध किया कि आप हमें इस विकट परिस्थिति में मार्गदर्शन करें। गौतम बुद्ध ने सबसे पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया और फिर राजा को सुझाव दिया कि सरोवर के चारों और युद्ध के नगाड़े-रण भेरियाँ बजाए जाएँ। सुनने वालों को विचित्र लगा कि भला नगाड़े बजाने से वह फँसा हुआ हाथी बाहर कैसे निकलेगा? जैसे ही युद्ध के नगाड़े बजना प्रारंभ हुए, वैसे ही उस मृत प्राय: हाथी के हाव-भाव में परिवर्तन आने लगा। पहले तो वह धीरे-धीरे करके खड़ा हुआ और फिर सबको हतप्रभ करते हुए स्वयं ही कीचड़ से बाहर निकल आया। गौतम बुद्ध ने सबको स्पष्ट किया कि हाथी की शारीरिक क्षमता में कमी नहीं थी, आवश्यकता मात्र उसके अंदर उत्साह के संचार करने की थी। जीवन में उत्साह बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य सकारात्मक चिंतन बनाए रखें और निराशा को हावी न होने दें। कभी-कभी निरंतर मिलने वाली असफलताओं से व्यक्ति यह मान लेता है कि अब वह पहले की तरह कार्य नहीं कर सकता, लेकिन यह पूर्ण सच नहीं है। जिस तरह से युद्ध के नगाड़े बजने से हाथी में आत्मबल का संचार हुआ और खड़ा हो गया। उसकी इम्युनिटी भी बढ़ गई और वह संकट से बहार आ गया। ठीक वैसे ही हम भी हमारे भीतर ही खोई शक्ति को जाग्रत करें और पूरी मस्ती के साथ हम स्वस्थ्य होने की इच्छाशक्ति को प्रबल करें तो निश्चित रूप से चिकित्सकों की सलाह अनुसार ली जाने वाली दवाईयों, आयुर्वेद से हमारी इम्युनिटी बढ़ जाएगी और हम कोरोना संकट से बच जाएंगे और यदि संक्रमित है तो स्वस्थ्य हो जाएंगे।
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